केटोविस में किस पर ध्यान देंगे हम
अगर विभिन्न देश पेरिस संधि पर सहमत हों तो कोप 24 को कम से कम आंशिक रूप से सफल माना जाएगा
विजय समनोत्रा, वरिष्ठ जलवायु सलाहकार, संयुक्त राष्ट्र स्थानीय समन्वयक कार्यालय, भारत
जलवायु परिवर्तन पर संयुक्त राष्ट्र संरचना समझौते के पक्षकारों के सम्मेलन का 24वां सत्र- कोप 24, जैसा कि मीडिया में कहा जाता है, इस सप्ताह पोलैंड के केटोविस में नियत तिथि से एक दिन बाद प्रारंभ हुआ। केटोविस में विश्व प्रतिनिधियों के एकत्र होने से पूर्व जलवायु परिवर्तन पर अंतरसरकारी पैनल की रिपोर्ट में ग्लोबल वॉर्मिंग को 1.5 डिग्री सेंटीग्रेट पर बरकरार रखने की व्यावहारिकता का स्पष्ट संकेत दिया गया था। इस रिपोर्ट में यह भी कहा गया था कि ऐसा न करने पर क्या परिणाम हो सकते हैं (यह तीसरी बार है जब पोलैंड ने कोप की मेजबानी की है जोकि किसी भी देश से अधिक है, सिवाय जर्मनी के, जहां जलवायु परिवर्तन सचिवालय स्थित है)। इस संदेश को हाल की प्राकृतिक आपदाओं से समझा जा सकता है, हालांकि यह कैलीफोर्निया में लगी आग, केरल की बाढ़ और एशिया-प्रशांत क्षेत्र की प्रलंयकारी आंधी तक ही सीमित नहीं है। वैसे हाल ही में संयुक्त राष्ट्र पर्यावरणीय कार्यक्रम ने घोषणा की है कि 2017 में कार्बन डाइ ऑक्साइड का विश्वव्यापी उत्सर्जन पिछले तीन वर्षों में पहली बार बढ़ा है। अगर 2015 की पेरिस संधि को जलवायु परिवर्तन पर अंतरराष्ट्रीय पहल का मार्गदर्शन करने वाली पहली सार्वभौमिक और परिचालन संबंधी सहमति की शुरुआत माना गया तो केटोविस के सम्मेलन को विश्वव्यापी समुदाय द्वारा नीतिगत पहल की दो वर्षीय अवधि की शुरुआत के तौर पर देखा जा रहा है। इस अवधि में विश्व समुदाय 2020 तक जलवायु पहल की अपनी प्रतिबद्धताओं को अनुभूत करने के लिए अपनी महत्वाकांक्षाओं में वृद्धि करेगा।
केटोविस में कई मुद्दों पर विचार किया जाएगा जोकि तापमान वृद्धि को कम करने, रिपोर्टिंग और समीक्षा, वित्त और विश्वव्यापी स्टॉक और बाजार इत्यादि से संबंधित हैं। लेकिन इस सम्मेलन की सफलता इस बात पर निर्भर करती है कि विभिन्न देश निम्नलिखित पर सहमति हासिल करने के लिए अपनी प्रतिबद्धता जताएं: पहला, इस बात पर विस्तृत दिशानिर्देश कि संधि को किस प्रकार पारदर्शितापूर्ण तरीके से अमल में लाया जाए, जिसे “पेरिस नियमावलि” के तौर पर संदर्भित किया जा सकता है; दूसरा, यह स्पष्ट संकेत कि राष्ट्र 2020 तक अपनी जलवायु प्रतिबद्धताओं में वृद्धि करेंगे; और तीसरा, कार्बन शून्य और जलवायु प्रतिरोधी क्षमता वाले संक्रमण को समर्थन देने के लिए वित्तीय संसाधनों की उपलब्धता।
जबकि वायु, सौर जैसी तकनीक और ऊर्जा भंडारण में निरंतर सुधार हो रहा है और मूल्यों में गिरावट हो रही है, विश्व स्तर पर हरित ऊर्जा क्रांति के लिए केटोविस में मजबूत नियमों और उम्मीदों के जरिए अधिक जोर दिए जाने की जरूरत होगी। पिछले वर्ष चीन में हरित ऊर्जा निवेश 132 अरब अमेरिकी डॉलर पहुंच गया था। विद्युत वाहनों की बिक्री संयुक्त राज्य अमेरिका में पिछले वर्ष 35 प्रतिशत बढ़ी जबकि चीन में इन वाहनों की बिक्री अमेरिका से तीन गुना अधिक हुई। भारत में नवीकरणीय ऊर्जा स्रोतों का हिस्सा देश में बिजली की कुल स्थापित क्षमता का 18 प्रतिशत है और पिछले 10 वर्षों में नवीकरणीय ऊर्जा का हिस्सा तीन गुना अधिक हुआ है। भारत विश्व में सौर ऊर्जा का पांचवां सबसे बड़ा उत्पादक है और नवीकरणीय ऊर्जा का छठा सबसे बड़ा उत्पादक है। देश अपनी 40 प्रतिशत स्थापित क्षमता को 2030 तक गैर-जीवाश्म ईंधन ऊर्जा संसाधनों से और 175 गीगावाट 2022 तक नवीकरणीय ऊर्जा से हासिल करना चाहता है, जिसमें 2022 तक 100 गीगावाट सौर क्षमता का लक्ष्य भी शामिल है।
भारत ने समानता और समान, किंतु भिन्न-भिन्न उत्तरदायित्वों के सिद्धांतों के आधार पर जलवायु परिवर्तन के संकट के खिलाफ अपनी पहल को मजबूत किया है। बॉन, जर्मनी में कोप 23 में भारत ने प्रण किया था कि वह “नैतिक बाध्यता” के रूप में पेरिस संबंधी अपनी जलवायु प्रतिबद्धताओं को “आगे और उससे परे” ले जाएगा।
कोप 24 की संवाद प्रक्रिया में न केवल परस्पर राष्ट्रीय सरकारों में गहरी रुचि होनी चाहिए बल्कि मंत्रियों, व्यवसाय और उद्योग जगत के प्रमुखों, नागरिक समाज के समूहों और अन्य के बीच भी ऐसी ही भावना होनी चाहिए। इनमें वे सभी शामिल हैं जो पेरिस संधि को वास्तविकता में बदलने के दृष्टिकोण में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकते हैं और उन्हें इसमें अपनी भूमिका निभानी भी चाहिए।