भारत के लघु उद्योग भविष्य के लिए तैयार
भारत में संयुक्त राष्ट्र औद्योगिक विकास संगठन के प्रतिनिधि रेने वान बर्केल द्वारा लिखित
सूक्ष्म, लघु और मध्यम दर्जे के उद्यम (एमएसएमई) अधिकतर अर्थव्यवस्थाओं की रीढ़ की हड्डी माने जाते हैं। भारत भी इसमें अपवाद नहीं। 2015-16 में भारत के लगभग 6.4 करोड़ एमएसएमई ने जीडीपी में 29% का योगदान दिया। निर्यात में उनकी हिस्सेदारी 45% रही और मैन्यूफैक्चरिंग के आउटपुट में 33%। 27 जून, 2019 को एमएसएमई दिवस मनाया जाता है। यह दिन टिकाऊ विकास लक्ष्यों को हासिल करने में एमएसएमई के महत्व पर सबका ध्यान आकृष्ट करता है।
मैन्यूफैक्चरिंग क्षेत्र के लिए ‘एसडीजी 9 – उद्योग, नवाचार और बुनियादी ढांचा’, एक ऐसे समावेशी और टिकाऊ औद्योगिक विकास का सपना देखता है जिसमें उद्योग जगत आर्थिक विकास, सामाजिक समावेश और पर्यावरण संरक्षण में योगदान देगा। इस सपने को पूरा करने के लिए ऐसे उद्योगों की नींव रखी जानी चाहिए जोकि वर्तमान के साथ-साथ भविष्य के अनुरूप हों। इसका अर्थ यह है कि ऐसे कारखाने लगाए जाएं जो अपने नए और उत्तम उत्पादों के साथ राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय बाजार में प्रतिस्पर्धा कर सकें, उत्कृष्ट रोज़गार प्रदान कर सकें और समुदायों एवं हितधारकों के हितों का ध्यान रखें तथा अपना रोज़मर्रा के कामकाज में ही पर्यावरण एवं बिजली संरक्षण जोड़ने की कोशिश करें। हालांकि अधिकतर मैन्यूफैक्चरिंग एमएसएमई फिलहाल स्थिरता एवं समावेश के शुरूआती दौर में हैं, फिर भी बड़ी संख्या में कारखाने भविष्य के लिए तैयार होने की पहल कर रहे हैं।
भारत में यूएनआईडीओ के काम के चार उदाहरण:
1. टिकाऊ चमड़ा उद्योग
कानपुर (उत्तर प्रदेश) में टैनिंग और चमड़ा निर्माण के लिए ऐसी उपयुक्त तकनीकों का प्रयोग किया जा रहा है जिनसे पानी की बर्बादी और बिजली की खपत कम होती है। इसमें पानी की मॉनीटरिंग और ऑटोमैटेड मिक्सिंग, हेयर सेविंग अनहेयरिंग, सूखी और नम सॉल्ट रिकवरी, लाइम लिकर रीसाइकलिंग और सौर जल एवं एयर हीटिंग इत्यादि शामिल हैं। मैन्यूफैक्चरिंग के इन तरीक़ों से लागत कम होती है और उत्पादकता में सुधार होता है। इसके अतिरिक्त रासायनिक जोखिम भी कम होते हैं और सुरक्षा और व्यवसाय से जुड़े स्वास्थ्य खतरे कम हो जाते हैं। टिकाऊ चमड़ा उत्पादन पर एक ई-लर्निंग पोर्टल भी बनाया गया है।
2. फैक्ट्री फ्लोर पर नवाचार और उत्कृष्टता
कारखानों में सुधार शुरू होता है – उचित मैन्यूफैक्चरिंग और पूर्ण उत्पादन क्षमता तक़नीकों के ज़रिए। इनमें 5 एस, दृश्य नियंत्रण और कारखाने में कर्मचारियों की भागीदारी शामिल है। ऐसे प्रयासों के अच्छे परिणाम निकल कर आते हैं, जो यूएनआईडीओ और भारतीय ऑटोमोटिव कंपोनेंट्स मैन्यूफैक्चरर्स एसोसिएशन (एसीएमए) द्वारा देश के 25 क्लस्टर्स में संयुक्त रूप से किए गए कार्यों में साफ नज़र आता है। इसमें हिस्सा
लेने वाले 152 ऑटोमैटिव कंपोनेंट्स मैन्यूफैक्चरर्स ने, कुल मिलाकर 17.5 करोड़ रुपए की बचत की। साथ ही उनके कर्मचारियों की अनुपस्थिति दर में 31% की गिरावट आई और बड़ी दुर्घटनाओं से बचा जा सका।
3. हरित नवाचार
देश भर में 20 से ज़्यादा एमएसएमई क्लस्टर्स, यूनएआईडीओ और उसके साझेदारों के साथ ऊर्जा दक्षता के क्षेत्र में काम कर रहे हैं, जैसे कि कपड़ा, फाउंड्री, सिरेमिक, हैंडटूल, डेयरी इत्यादि। उदाहरण के लिए, कोयम्बटूर में 100 फाउंड्री इकाइयों ने ऊर्जा दक्षता पद्धतियों को अपनाया है। इन पद्धतियों को यूनएआईडीओ और ब्यूरो ऑफ एनर्जी एफिशिएंसी द्वारा संयुक्त रूप से एनर्जी मैनेजमेंट सेल की सहायता से विकसित किया गया है। क्लस्टर में एमएसएमई फाउंड्रीज ने 1.59 करोड़ रुपये का निवेश करके 189 टन तेल की बचत की है जिसकी वार्षिक लागत 2.27 करोड़ रुपये है। इससे 1843 टन ग्रीनहाउस गैसों का उत्सर्जन रुका है।
4. Cleantech Innovations
4. क्लीनटेक इनोवेशंस
क्लीनटेक एक तेजी से बढ़ता हुआ बाज़ार है जिसमें भारतीय नव-अन्वेषकों के लिए भी काफी संभावनाएं हैं। 80 से अधिक इनोवेटरों ने ऊर्जा दक्षता, नवीकरणीय ऊर्जा, जल, और अपशिष्ट जल एवं अपशिष्ट द्वारा लाभ जैसे नए प्रयोगों के साथ क्लीनटेक एक्सेलेटर में भाग लिया। इनमें से 26 नवप्रवर्तकों ने अपने स्टार्ट-अप शुरू किए और वाणिज्यिकरण के लिए सामूहिक रूप से 70 लाख अमेरिकी डॉलर एकत्र किए। इनमें राइनो मशीनों की ऊर्जा दक्ष फाउंड्री मशीनरी, वाटसन का रासायनिक और ऊर्जा मुक्त जल शुद्धीकरण, और सागर डिफेंस का सतही जल से प्लास्टिक और कचरे को इकट्ठा करना वाला फ्लोटिंग ड्रोन शामिल हैं। इसके अलावा, इनमें से कई वायु प्रदूषण से निपटने में भी पूर्ण रूप से सक्षम हैं।
यूएनआईडीओ के विषय में: यूएनआईडीओ संयुक्त राष्ट्र की एक विशेषज्ञ संस्था है जोकि गरीबी उन्मूलन, समावेशी भूमंडलीकरण और पर्यावरणीय स्थिरता के माध्यम से औद्योगिक विकास को बढ़ावा देती है। यूएनआईडीओ का क्षेत्रीय कार्यालय प्रतिस्पर्धी उद्योग एवं उत्पादक रोजगार को बढ़ावा देने के लिए ज्ञान, सूचना, नए विचारों, दक्षता और तकनीक को एकजुट करता है। इसके लिए वह क्षेत्र की सामान्य समस्याओं से निपटने के लिए सर्वोत्तम कार्य पद्धतियों और दृष्टिकोणों को लागू करता है, साथ ही पर्यावरण की रक्षा भी करता है।