प्राकृतिक संसाधन प्रबंधन, सामुदायिक क्षमता और ऊर्जा दक्षता

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भारत में विश्व की 18% जनसंख्या बसती है लेकिन वह विश्व की केवल 6% मुख्य ऊर्जा का उपभोग करता है। फिर भी देश का ऊर्जा उपभोग पिछले तीन दशकों में उल्लेखनीय रूप से बढ़ा है। अब देश की मजबूत आर्थिक वृद्धि और जनसंख्या के बढ़ने के साथ ऊर्जा उपभोग के बढ़ने की उम्मीद की जा रही है। इस मांग को पूरा करने के लिए पर्याप्त ऊर्जा आपूर्ति को सुनिश्चित करना देश के लिए एक बड़ी समस्या है। इसके अतिरिक्त भारत द्वारा किए जाने वाले ग्रीन हाउस उत्सर्जन में ऊर्जा क्षेत्र का योगदान 71% है। सरकार भी आर्थिक वृद्धि को तेज करने और सतत विकास को प्रोत्साहित करने के लिए कृत संकल्प है।

चुनौती

जैसे-जैसे भारत पेरिस समझौते के तहत प्रतिबद्धताओं को पूरा करने और ‘आर्थिक विकास के अनुरूप स्तर पर अन्य द्वारा अपनाए गए मार्ग से इतर स्वच्छ मार्ग’ के अनुमोदन की दिशा में आगे बढ़ रहा है, ग्रामीण और शहरी क्षेत्रों में जलवायु परिवर्तन को संबोधित करना एक समान चुनौतीपूर्ण हो गया है। विकासशील देश जलवायु परिवर्तन के प्रति अधिक संवेदनशील हैं, 2013 में भारत उन तीन देशों में शामिल था जिन पर बदलती जलवायु का गंभीर संकट उत्पन्न हो सकता है। भारत में विश्व का केवल 2.3% भूक्षेत्र आता है लेकिन यहां विश्व की 7-8% प्रजातियां पाई जाती हैं। साथ ही देश के 21.05% भौगोलिक क्षेत्र के अंतर्गत 692,027 किलोमीटर के करीब के वन क्षेत्र आते हैं। पर्यावरण की दुर्दशा, जलवायु परिवर्तन और आपदाओं, भूक्षेत्र और प्राकृतिक संसाधनों के अस्थायी उपयोग तथा अप्रभावी अपशिष्ट एवं रसायनिक प्रबंधन ने महिलाओं और बच्चों के जीवन को भिन्न और गैर अनुपातिक रूप से प्रभावित किया है। राष्ट्रीय नीति निर्माण में पर्यावरणीय प्रबंधन और आपदा जोखिम प्रबंधन एवं प्रतिक्रिया में लैंगिक असमानता को कम करने की जरूरत है। आपदा के व्यापक प्रभाव को कम करने के लिए सभी स्तरों पर सामुदायिक एवं संस्थागत क्षमता निर्माण तथा ऐसे विकास को बढ़ावा देने की जरूरत है जिसमें जोखिम का पूर्वाकलन किया जा सके।

भारत सरकार के कार्यक्रम और पहल

भारत के सतत विकास संबंधी दृष्टिकोण के तीन स्तंभ हैं- ऊर्जा सुरक्षा, जलवायु अनुकूलन तथा सतत उपभोग। सरकार सौर ऊर्जा (विशेष रूप से ऑफ-ग्रिड) पर ध्यान केंद्रित कर रही है जिससे नवीकरणीय ऊर्जा क्षमता को मजबूत किया जा सकता है। खाना पकाने के वैकल्पिक ईंधन के रूप में लिक्विड पेट्रोलियम गैस (एलपीजी) को सबसिडी पर उपलब्ध कराया जा रहा है जोकि घर के भीतर वायु प्रदूषण को कम करने की दिशा में एक बड़ा प्रयास है।

भारत ने अंतरराष्ट्रीय सौर गठबंधन बनाने की पहल की है। यह सौर संसाधन से समृद्ध 121 देशों का गठबंधन है जिसका लक्ष्य सौर तकनीक में नए प्रयोगों को बढ़ावा देना और इन देशों में सौर तकनीक को अपनाने के लिए वित्तीय सहायता देना है।

बिजली उत्पादन के क्षेत्र को निजी निवेश के लिए खोला गया है। यह कुछ समय के लिए है। इसमें संबंधित परियोजनाओं में कंपनियों को आकर्षित करने के लिए वित्तीय प्रोत्साहन को बढ़ाया गया है। भारत लक्षित वनीकरण कार्यक्रम, जैसे हरित भारत मिशन (जीआईएम) के जरिए देश में वन क्षेत्र को बढ़ाने की दिशा में भी काम कर रहा है। राष्ट्रीय पर्यावरण नीति विकास योजना प्रक्रियाओं की मुख्यधारा में जैवविविधता सहित पर्यावरण को लाने का प्रयास कर रही है।

संयुक्त राष्ट्र का सहयोग


यूएनडीपी ने प्राकृतिक संसाधन प्रबंधन, सामुदायिक क्षमता और ऊर्जा दक्षता पर प्राथमिक समूह का गठन किया है। इस समूह में आईओएम, यूएनईपी, यूनेस्केप (एपीसीटीटी), यूनेस्को, यूएनएफपीए, यूएन हैबिटैट, यूनिसेफ, यूएनआईडीओ, यूएन विमेन और डब्ल्यूएचओ शामिल हैं।

जिन क्षेत्रों में समन्वय किया जा रहा है, उनमें निम्नलिखित शामिल हैं- किफायती एवं भरोसेमंद ऊर्जा की उपलब्धता बढ़ाना, ऊर्जा दक्षता को बढ़ाना, सौर ऊर्जा उत्पादन में नवोन्मेषी साझेदारी एवं वित्तीय मॉडल, नवीकरणीय ऊर्जा का अधिक इस्तेमाल, यूएनएफसीसीसी के तहत राष्ट्रीय प्रतिबद्धताओं को पूरा करने में सहयोग देना, संस्थागत एवं सामुदायिक क्षमता में वृद्धि, आइची एवं राष्ट्रीय जैव विविधता के लक्ष्यों को पूरा करना और रासायनिक एवं अपशिष्ट प्रबंधन को मजबूत करना।[/vc_column_text][/vc_column][/vc_row]