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भारत का पूर्वोत्तर क्षेत्र आठ राज्यों से मिलकर बनता है- अरुणाचल प्रदेश, असम, मणिपुर, मेघालय, मिजोरम, नागालैंड, सिक्किम और त्रिपुरा। यह क्षेत्र देश के भौगोलिक क्षेत्र का 8% है। पूर्वोत्तर राज्यों में मेघालय में 2001-11 के दौरान जनसंख्या की वृद्धि दर सबसे अधिक रही, जबकि नगालैंड में सबसे कम।
भारत के पूर्वोत्तर क्षेत्र में अपार प्राकृतिक संसाधन हैं। यहां देश के 34% जल संसाधन हैं और 40% जलऊर्जा क्षमता है।[1] यह क्षेत्र पूर्व के मुख्य देशों तथा बांग्लादेश एवं म्यांमार जैसे पड़ोसी देशों के निकट होने के कारण कूटनीतिक दृष्टि से महत्वपूर्ण है, चूंकि यहां से पूर्वी भारत के परंपरागत घरेलू बाजार तक पहुंच बनती है। दक्षिण एशियाई बाजार में सुविधाजनक तरीके से प्रवेश करने के लिए यह क्षेत्र महत्वपूर्ण है। अपार संसाधन, ऊपजाऊ कृषि भूमि और अकूत मानव पूंजी-इन सबके साथ यह क्षेत्र देश के सर्वाधिक संपन्न क्षेत्रों में से एक हो सकता है।
इसके बावजूद भारत का पूर्वोत्तर क्षेत्र देश के सर्वाधिक पिछड़े क्षेत्रों में से एक है। यहां की प्रति व्यक्ति आय सबसे कम है, निजी निवेश की कमी है, पूंजीगत निर्माण का स्तर निम्न है, अवसंरचनागत सुविधाएं पर्याप्त नहीं हैं, यह क्षेत्र भौगोलिक दृष्टि से अलग-थलग है और उसके खनिज संसाधनों, जल ऊर्जा क्षमता और जैव विविधता का पर्याप्त रूप से प्रयोग नहीं किया गया है।
खाद्य और कृषि संगठन (एफएओ) भारत में पूर्वोत्तर निष्कर्ष समूह का संयोजक है, जोकि संयुक्त राष्ट्र औद्योगिक विकास संगठन (यूएनआईडीओ), अंतरराष्ट्रीय श्रम संगठन (आईएलओ), अंतरराष्ट्रीय प्रवास संगठन (आईएमओ) और संयुक्त राष्ट्र विकास कार्यक्रम (यूएनडीपी) के साथ सहयोग कर रहा है।
[1] फिक्की (2014), आसियान का द्वार- भारत का पूर्वोत्तर क्षेत्र[/vc_column_text][/vc_column][/vc_row]