गरीबी और शहरीकरण

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भारत ने पिछले दो दशकों में जबरदस्त वृद्धि हासिल की। 1994 से 2012 के दौरान गरीबी रेखा के नीचे जीवनयापन करने वाले लोगों का अनुपात 45% से घटकर 22% हो गया। लगभग 133 मिलियन भारतीय गरीबी के दुष्चक्र से मुक्त हुए। वर्तमान में भारत सरकार गरीबी उन्मूलन के लिए प्रतिबद्ध है जिसे देश के माननीय प्रधानमंत्री ने “20 वीं शताब्दी का सबसे बड़ा अपूर्ण कार्य” कहा है।

विश्व में शहरीकरण तेजी से बढ़ रहा है। 2030 तक विश्व की जनसंख्या बढ़कर 1.7 बिलियन हो जाएगी। इस शहरीकरण का असर सबसे अधिक एशिया और अफ्रीका में होगा। 90% शहरीकरण इन दोनों महाद्वीपों में होगा। 2030 तक भारत में 400 मिलियन से अधिक लोग शहरों में बसे होंगे। मौजूदा समय में शहरों में बसे प्रत्येक छह परिवारों में से एक परिवार गंदी बस्तियों यानी स्लम्स में रहता है और आने वाले वर्षों में यह संख्या बढ़ने का अनुमान है।

चुनौतियां

भले ही प्रगति की दर प्रभावशाली है लेकिन भारत में गैरबराबरी अब भी विकास की दिशा में सबसे बड़ी चुनौती है। मातृत्व मृत्यु दर का ही उदाहरण लिया जा सकता है। प्रत्येक 100,000 जीवित शिशुओं पर जहां केरल में 61 महिलाएं मौत का शिकार होती हैं, वहीं असम में 300 से अधिक। गरीबी, असमानता और तेजी से बढ़ते शहरीकरण के कारण विश्व स्तर पर सतत विकास लक्ष्यों (एसडीजीज़) को हासिल करना मुश्किल हो रहा है।

भारत सरकार के कार्यक्रम और पहल

देश के कायाकल्प के लिए शिक्षा, वित्तीय समावेश, जन कल्याण और रोजगार के क्षेत्रों से जुड़ी समस्याओं को हल किया जाना चाहिए। इन क्षेत्रों में इस प्रकार निवेश किया जाना चाहिए कि उसका लाभ सभी को मिले। ग्रामीण और शहरी क्षेत्रों की गरीब जनता निरंतर इन समस्याओं का सामना करती है। निरंतर बढ़ती मांग को पूरा करने, समतामूलक एवं समावेशी शहरी विकास को सतत रखने और गरीबी कम करने के लिए सरकार ने कई मुख्य पहल की हैं, उदाहरण के लिए- सभी के लिए आवास, अटल नवीकरण और शहरी परिवर्तन मिशन (अमृत), स्मार्ट सिटी मिशन, डिजिटल इंडिया, जन धन योजना और मेक इन इंडिया।

हाल ही में प्रधानमंत्री द्वारा किए गए सुधारों से विदेशी निवेश बढ़ा है और देश में व्यापार के लिए उत्तम परिवेश तैयार हुआ है। वैश्विक प्रतिस्पर्धा रिपोर्ट में भारत की रैंकिंग 2014 में 71 से बढ़कर 2015 में 55 हो गई। ग्रामीण क्षेत्रों के निवासियों की वित्तीय और डिजिटल समावेश संबंधी नीतियों का उल्लेखनीय असर देखने को मिला। बैंक खातों, मोबाइल नंबरों और राष्ट्रीय विशिष्ट पहचान संख्या (जैम या जन धन-आधार-मोबाइल त्रयी) को लिंक करने की सरकार की पहल ने वित्तीय समावेश में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। प्रत्येक भारतीय का एक बैंक खाता हो, यह सुनिश्चित करने हेतु यूनिवर्सल बैंकिंग कवरेज के लिए पहल की गई है। इसके अंतर्गत लाभार्थियों के खाते में सबसिडी और दूसरे लाभ सीधे हस्तांतरित होते हैं और सरकार के जन कल्याण कार्यक्रमों में लीकेज जैसी कमियां खत्म होती हैं।

संयुक्त राष्ट्र का सहयोग

यूएनडीपी गरीबी उन्मूलन और शहरीकरण जैसे प्राथमिकता प्राप्त क्षेत्रों पर केंद्रित समूह को मंच प्रदान करता है। इसके सदस्यों में आईएलओ, आईओएम, यूएनएड्स, यूएनसीडीएफ, यूएनईपी, यूनेस्को, यूएनएफपीए, यूएन हैबिटैट, यूनिसेफ, यूएनआईडीओ, यूएनओडीसी, यूएनवी, यूएन विमेन, डब्ल्यूएफपी और डब्ल्यूएचओ शामिल हैं।

जनजातीय कार्य मंत्रालय और नीति आयोग के तत्वावधान में पहली राष्ट्रीय जनजातीय मानव विकास रिपोर्ट तैयार की जा रही है। इस रिपोर्ट में देश में जनजातीय समूहों के विकास में बाधा पहुंचाने वाली सामाजिक और आर्थिक चुनौतियों को रेखांकित किया जाएगा।

उड़ीसा सरकार को सामाजिक संरक्षण पर राज्य स्तरीय मानचित्रण अध्ययन में सहयोग दिया जा रहा है। समूह गरीबों और सामाजिक रूप से बहिष्कृत समूहों से संबंधित नीतियों और कार्यक्रमों को प्रभावित करने वाले प्रमाण आधारित ज्ञान उत्पादों को सहयोग प्रदान करता है और उन्हें वितरित करता है।

समूह इन क्षेत्रों में भी सहयोग प्रदान करता है, कार्यक्रमों और एसडीजीज़ से संबंधित स्थानीय स्तरों के जन केंद्रित नियोजन और कार्यान्वयन के बीच एकीकरण, पात्रताओं और उत्तम सेवाओं की सुविधाओं को बढ़ाना, कानूनी अधिकारों और अवसरों से संबंधित सूचनाओं तक पहुंच में सुधार करना, नवाचार, डिजिटल सेवा वितरण समाधानों तक सबकी पहुंच बढ़ाना और आर्थिक परिसंपत्तियों तक पहुंच और स्वामित्व में बढ़ोतरी करना।[/vc_column_text][/vc_column][/vc_row]