[vc_row][vc_column][vc_single_image image=”12368″ img_size=”full” alignment=”center”][vc_column_text]
आज दुनियाभर में 80 करोड़ लोग अब भी निपट गरीबी की हालत में जी रहे हैं। हर पाँच में से एक व्यक्ति प्रतिदिन 1.25 अमरीकी डॉलर से भी कम में गुज़ारा कर रहा है। ऐसे में निपट गरीबी हमारे दौर का एक सबसे तात्कालिक संकट बन गई है। 1990 के बाद से निपट गरीबी में जीते लोगों की संख्या में आधे से अधिक की गिरावट आई है, फिर भी अभी बहुत कुछ किया जाना है। लाखों लोग प्रति दिन 1.25 अमरीकी डॉलर से कुछ अधिक पर गुज़ारा कर रहे हैं और उससे कहीं अधिक संख्या में लोगों के वापस गरीबी के गर्त में गिर जाने की आशंका है। युवाओं की स्थिति विशेषकर लाचारी की है। कुल कामकाजी वयस्का आबादी में से 10.2% 2015 में प्रति दिन 1.9 अमरीकी डॉलर की वैश्विक गरीबी रेखा से नीचे जी रहे थे, किंतु जब हम 15-24 वर्ष के आयु वर्ग पर नज़र डालते हैं तो ये अनुपात 16% हो जाता है। बच्चे भी वैश्विक गरीबी के शिकार हैं। हर दिन 18,000 बच्चे गरीबी से जुड़े कारणों से मरते हैं।
गरीबी सिर्फ आमदनी या संसाधनों की सुलभता का अभाव नहीं है। यह शिक्षा के लिए घटते अवसरों, सामाजिक भेदभाव और निर्णय प्रक्रिया में भागीदारी करने की अक्षमता के रूप में प्रकट होती है। उदाहरण के लिए विकासशील देशों में सबसे गरीब परिवारों के बच्चों के स्कूल में पढ़ने की संभावना सबसे अमीर परिवारों के बच्चों की तुलना में चार गुणा कम है। किंतु निपट वंचना का सवाल केवल खुशहाली और अवसरों तक सीमित नहीं है, ये जीवित रह पाने का सवाल भी है । लैटिन अमरीका और पूर्वी एशिया में 5 वर्ष की आयु तक पहुँचते-पहुँचते सबसे गरीब बच्चों की मृत्यु की आशंका सबसे अमीर बच्चों की तुलना में तीन गुणा अधिक है।
गरीबी के हर रूप को हर जगह से मिटा देना 2030 के सतत् विकास एजेंडा का पहला लक्ष्य है। इसके लिए सामाजिक संरक्षण देना, बुनियादी सेवाओं तक पहुँच बढ़ाना और प्राकृतिक आपदाओं का असर सहने की क्षमता बढ़ाना आवश्यक है क्योंकि उनके कारण लोगों के संसाधनों और आजीविका को भारी नुकसान होता है। अंतराष्ट्रीय समुदाय ने सतत् विकास एजेंडा 2030 के माध्यम से इस बात पर सहमति दी है कि आर्थिक वृद्ध् समावेशी होनी चाहिए, खासकर इसमें गरीबों और सबसे लाचार वर्गों को स्थान मिलना चाहिए और उनका उद्देश्य अगले 15 वर्ष में हर जगह, हर व्यक्ति के लिए निपट गरीबी को जड़ से मिटा देने का है।
2012-2013 के बीच दुनियाभर में निपट गरीबी में आई कमी का श्रेय मुख्य रूप से एशिया- विशेषकर चीन और भारत को जाता है। भारत ने अपने यहाँ गरीबों का अनुपात घटा कर आधा करने की उल्लेखनीय उपलब्धि हासिल की है फिर भी 2011-2012 तक 21% आबादी गरीबी में जी रही थी। इनमें से करीब 80% गरीब गाँवों में रहते हैं औऱ गरीबी को जड़ से मिटाना भारत की राष्ट्रीय प्राथमिकताओं का मूल मंत्र है। भारत सरकार की अनेक प्रगतिशील नीतियाँ हैं। इनमें विश्व की सबसे बड़ी रोज़गार गारंटी योजना, महात्मा गाँधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोज़गार गारंटी योजना औऱ राष्ट्रीय सामाजिक सहायता योजना शामिल हैं।
[/vc_column_text][/vc_column][/vc_row]