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असमानताएं बढ़ रही हैं। 2014 में दुनिया में सबसे अमीर एक प्रतिशत जनसंख्या के पास दुनिया की 48% दौलत थी, जबकि सबसे निचले स्तर पर मौजूद 80% लोगों के पास कुल मिलाकर दुनिया की सिर्फ 6% दौलत थी। यह असंतुलन और भी स्पष्ट हो जाता है, जब हम देखते हैं कि सिर्फ 80 व्यक्तियों के पास इतनी दौलत है जितनी दुनिया भर में सबसे कम आय वाले 3.5 अरब लोगों के पास है। औसत आय में असमानता 1990 और 2010 के बीच विकासशील देशों में 11% बढ़ी। विकासशील देशों में अधिसंख्य परिवार यानी जनसंख्या के 75% से अधिक, ऐसे समाजों में जीते हैं, जहां आय का वितरण 1990 के दशक की तुलना में और अधिक असमान है। अंतर्राष्ट्रीय समुदाय ने लोगों को गरीबी के दल-दल से उबारने के लिए उल्लेखनीय सफलताएं हासिल की हैं। सबसे लाचार देश- सबसे कम विकसित देश, भूमि से घिरे विकासशील देश और छोटे द्वीपीय विकासशील देश- गरीबी कम करने की दिशा में आगे बढ़ रहे हैं। किन्तु इन देशों के भीतर, स्वास्थ्य एवं शिक्षा सेवाओं तथा अन्य परिसंपत्तियों की सुलभता में भारी विषमताएं हैं। देशों के बीच आय में असमानता भले ही कम हुई हो, देशों के भीतर असमानता बढ़ी है।
असमानता प्रगति में बाधक होती है, जब वह लोगों से अवसर छीनती है और बहुत से लोगों को निपट गरीबी की हालत में धकेल देती है। उदाहरण के लिए 2000 के दशक के अंतिम वर्षों में दक्षिण एशिया में सबसे दौलतमंद जनसंख्या के बच्चों के लिए प्राइमरी स्कूल की पढ़ाई पूरी करने की संभावना सबसे गरीब वर्गों के बच्चों की तुलना में दोगुनी अधिक थी। लैटिन अमरीका और पूर्व एशिया में सबसे गरीब परिसंपत्तियों वाले वर्गों में पांच वर्ष की आयु से पहले ही बच्चों की मृत्यु की आशंका सबसे अमीर वर्गों के बच्चों की तुलना में तीन गुना अधिक है। इस बात पर सहमति बढ़ रही है कि आर्थिक वृद्धि यदि समावेशी नहीं है और यदि उसमें सतत् विकास के तीनों पहलू- आर्थिक, सामाजिक और पर्यावरण संबंधी- शामिल नहीं हैं तो वह गरीबी कम करने के लिए पर्याप्त नहीं है। बढ़ती असमानताएं मानव विकास पर विपरीत असर डालती हैं। असमानता समायोजित मानव विकास सूचकांक (एचडीआई) के अनुसार असमानता के कारण सहारा के दक्षिण में अफ्रीकी देशों की एचडीआई की क्षति 33% और दक्षिण एशिया की 25% रही।
लक्ष्य 10 ने अंतर्राष्ट्रीय समुदाय के सामने निम्नलिखित कार्य रखा है: यह सुनिश्चित करना कि उनकी जनसंख्या के सबसे निचले स्तर के 40% हिस्से की आय 2030 तक राष्ट्रीय औसत से अधिक रहे। असमानता कम करने के लिए नीतियां सिद्धांत रूप में सार्वभौमिक होनी चाहिए जिनमें लाभों से वंचित और हाशिए पर जीती जनसंख्या की जरूरतों पर ध्यान दिया जाए। समावेशन को सामाजिक के साथ-साथ राजनीतिक क्षेत्रों में भी सभी आयु, सेक्स, नस्ल, धर्म और जातीय समाजों में सक्रिय रूप से बढ़ावा दिया जाना चाहिए जिससे देशों के भीतर समानता की परिस्थितियां पैदा हो सकें। विश्व भर में अधिक समुचित अंतर्राष्ट्रीय व्यवस्था कायम करने के लिए वैश्विक वित्तीय बाजारों को बेहतर नियमन की आवश्यकता होगी तथा अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर निर्णय प्रक्रिया में विकासशील देशों की आवाज़ को अधिक महत्व देना होगा।
भारत के लिए आय में असमानता का गिनि कोएफिशिएंट 2010 में 36.8% था, जो घटकर 2015 में 33.6% रह गया। तीन तरफा जनधन-आधार-मोबाइल कार्यक्रम पर भारत सरकार जितना बल दे रही है, उसका उद्देश्य समावेशन, वित्तीय सशक्तिकरण और सामाजिक सुरक्षा की एक समग्र रणनीति है। यह प्राथमिकताएं 2030 तक सबके लिए समानता हासिल करने और सामाजिक, आर्थिक एवं राजनीतिक समावेशन को प्रोत्साहित करने के उद्देश्यों के अनुरूप हैं।
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