सतत विकास लक्ष्‍य 12 – संवहनीय उपभोग और उत्‍पादन

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उपभोग और उत्‍पादन के संवहनीय स्वरूप सुनिश्चित करना

चुनौती

हमारी पृथ्वी भीषण दबाव में है। यदि 2050 तक विश्‍व की जनसंख्‍या 9.6 अरब तक पहुंचती है तो हमें हर व्‍यक्ति की मौजूदा जीवन शैली को सहारा देने के लिए 3 पृथ्वियों की आवश्‍यकता होगी। हर वर्ष कुल आहार उत्‍पादन का लगभग एक-तिहाई अर्थात 10 खरब अमरीकी डॉलर मूल्‍य का 1.3 अरब टन आहार उपभोक्‍ताओं और दुकानदारों के कचरों के डिब्‍बों में सड़ता है अथवा परिवहन और फसल कटाई के खराब तरीकों के कारण बर्बाद हो जाता है। एक अरब से अधिक लोगों को अब भी ताजा पानी सुलभ नहीं है। दुनिया में 3% से भी कम पानी ताजा यानी पीने लायक है और उसमें से 2.5% अंटार्कटिक आर्कटिक और हिमनदों में जमा हुआ है। इसलिए इंसानों की सभी पारिस्थितिकी तथा ताजे पानी की जरूरतों के लिए हमें सिर्फ 0.5% का ही सहारा है। टैक्‍नॉलॉजी की उन्‍नति से ऊर्जा के कुशल इस्‍तेमाल को बढ़ावा मिला है। इसके बावजूद ओईसीडी देशों में 2020 तक ऊर्जा का उपयोग 35% और बढ़ जाएगा।

ये क्‍यों महत्‍वपूर्ण है?

संवहनीय उपभोग और उत्‍पादन का उद्देश्‍य है-कम साधनों से अधिक और बेहतर लाभ उठाना, संसाधनों का उपयोग, विनाश और प्रदूषण कम करके आर्थिक गतिविधियों से जन कल्‍याण के लिए कुल लाभ बढ़ाना और जीवन की गुणवत्‍ता में सुधार करना। सतत् विकास तभी हासिल किया जा सकता है, जब हम न सिर्फ अपनी अर्थव्‍यवस्‍थाओं में वृद्धि होने दें, बल्कि उस प्रक्रिया में बर्बादी को कम से कम होने दें। पर्यावरण को दूषित करने वाली वृद्धि, विकास को पीछे धकेल देती है।

इसका समाधान क्‍या है?

संवहनीय उपभोग और उत्‍पादन का अर्थ है संसाधनों और ऊर्जा के कुशल प्रयोग को प्रोत्‍साहन, टिकाऊ बुनियादी सुविधाएं, सबके लिए बुनियादी सेवाओं, प्रदूषण रहित और उत्‍कृष्‍ट नौकरियां तथा अधिक गुणवत्‍तापूर्ण जीवन की सुलभता। इन सब पर अमल से कुल मिलाकर विकास योजनाओं को साकार करने में मदद मिलती है, भविष्‍य की आर्थिक. पर्यावरणीय और सामाजिक लागत कम होती है, आर्थिक स्‍पर्धा क्षमता मजबूत होती है और गरीबी में कमी आती है। इसके लिए उत्‍पादक से लेकर अंतिम उपभोक्‍ता तक आपूर्ति श्रृंखला में सक्रिय प्रत्‍येक कारक के बीच सोचे-समझे दृष्टिकोण एवं सहयोग की भी आवश्‍यकता होती है। इसके लिए जागरूकता बढ़ाने तथा संवहनीय खपत और जीवन शैली के बारे में, उपभोक्‍ताओं को शिक्षित करना जरूरी है। उपभोक्‍ताओं को मानकों एवं लेबलिंग के माध्‍यम से उपयुक्‍त सूचना दी जाए और संवहनीय सार्वजनिक खरीद से जोड़ा जाए। इसके लिए कारोबार, उपभोक्‍ताओं, नीति-निर्माताओं, शोधकर्ताओं, वैज्ञानिकों, दुकानदारों, मीडिया और विकास सहयोग एजेंसियों के बीच नई वैश्‍विक साझेदारी भी जरूरी है।

भारत और लक्ष्‍य 12

संसाधनों के उपयोग का मुद्दा देश के लिए महत्‍वपूर्ण है। भारत में दुनिया की 17.5% जनसंख्‍या निवास करती है पर उसके पास केवल 4% वैश्विक जल संसाधन है। कचरे और प्रदूषक तत्‍वों के उत्‍पत्ति भी एक चुनौती है। भारत ग्रीनहाउस गैसों का चौथा सबसे बड़ा उत्‍सर्जक है और विश्‍व का 5.3% उत्‍सर्जन करता है। किन्‍तु अक्‍तूबर, 2015 में भारत ने संकल्‍प लिया कि वह अपने सकल घरेलू उत्‍पाद की उत्‍सर्जन तीव्रता 2005 के स्‍तर से 2020 तक 20-25% और 2030 तक 33-35% कम करेगा। 2 अक्‍तूबर, 2016 को भारत ने ऐतिहासिक पेरिस समझौते का औपचारिक अनुमोदन कर दिया। राष्‍ट्रीय जैव ईंधन नीति और राष्‍ट्रीय स्‍वच्‍छ ऊर्जा निधि सरकार की कुछ प्रमुख योजनाएं हैं, जिनका उद्देश्‍य संवहनीय खपत और उत्‍पादन हासिल करना तथा प्राकृतिक संसाधनों के कुशल उपयोग का प्रबंधन करना है।

उद्देश्‍य

  • संवहनीय उपभोग और उत्‍पादन के बारे में 10 वर्षीय कार्यक्रम फ्रेमवर्क पर अमल करना, विकासशील देशों की क्षमताओं और विकास को ध्‍यान में रखते हुए विकसित देशों की अगुवाई में सभी देशों का कार्रवाई करना।
  • 2030 तक, प्राकृतिक संसाधनों का संवहनीय प्रबंधन और कुशल उपयोग हासिल करना।
  • 2030 तक, विश्‍व स्‍तर पर खुदरा और उपभोक्‍ता स्‍तरों पर भोजन की प्रति व्‍यक्ति बर्बादी को आधा करना और फसल कटाई के बाद होने वाले नुकसान सहित उत्‍पादन और आपूर्ति श्रृंखलाओं में खाद्य पदार्थों की क्षति को कम करना।
  • 2020 तक, स्‍वीकृत अंतर्राष्‍ट्रीय समझौतों के अनुसार रसायनों और उनके कचरे का उनके पूरे जीवन चक्र में पर्यावरण की दृष्टि से सुरक्षित प्रबंधन हासिल करना। वायु, जल और मिट्टी में उन्‍हें छोड़े जाने में उल्‍लेखनीय कमी करना ताकि मानव स्‍वास्‍थ्‍य और पर्यावरण पर उनका विपरीत प्रभाव कम से कम हो।
  • 2030 तक, निरोधन, कमी, रिसाइक्‍लिंग और दोबारा इस्‍तेमाल के जरिए कचरे की उत्‍पत्ति में उल्‍लेखनीय कमी करना।
  • कंपनियों, विशेषकर बड़ी और बहुराष्‍ट्रीय कंपनियों को संवहनीय विधियां अपनाने और उनके सूचना चक्र में संवहनीयता की सूचना शामिल करने के लिए प्रोत्‍साहित करना। ऐसी सार्वजनिक खरीद विधियों को प्रोत्‍साहित करना जो संवहनीय और राष्‍ट्रीय नीतियों तथा प्राथमिकताओं के अनुरूप हों।
  • 2030 तक, सुनिश्चित करना कि हर जगह लोगों के पास सतत् विकास और प्रकृति के साथ सामंजस्‍यपूर्ण जीवन शैली के बारे में उपयुक्‍त सूचना और जागरूकता हो।
  • विकासशील देशों को उपभोग और उत्‍पादन के अधिक संवहनीय स्‍वरूपों की ओर बढ़ने के लिए वैज्ञानिक और प्रौद्योगिक क्षमता मजबूत करने के लिए समर्थन देना।
  • रोजगार पैदा करने और स्‍थानीय संस्‍कृति तथा उत्‍पादों का प्रचार-प्रसार करने वाले संवहनीय पर्यटन के लिए सतत् विकास प्रभावों की निगरानी के साधन विकसित करना और अपनाना।
  • बाजार में विसंगतियों को राष्‍ट्रीय परिस्थितियों के अनुसार हटाकर व्‍यर्थ उपभोग को प्रोत्‍साहित करने वाली अकुशल जीवाश्‍म ईंधन सब्सिडी को युक्तिसंगत बनाना। इसमें जहां कहीं मौजूद हों, हानिकारक सब्सिडी को चरणबद्ध ढंग से हटाना और कर ढांचे में फेरबदल करना शामिल है जिससे पर्यावरण पर उनका प्रभाव साफ जाहिर हो। ऐसा करते समय विकासशील देशों की विशिष्‍ट आवश्‍यकताओं और परिस्थितियों को पूरी तरह ध्‍यान में रखा जाए और उनके विकास पर पड़ने वाले विपरीत प्रभावों की आशंका को इस तरह कम से कम किया जाए कि गरीब और प्रभावित समुदायों को संरक्षण मिले।

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