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हमारी पृथ्वी भीषण दबाव में है। यदि 2050 तक विश्व की जनसंख्या 9.6 अरब तक पहुंचती है तो हमें हर व्यक्ति की मौजूदा जीवन शैली को सहारा देने के लिए 3 पृथ्वियों की आवश्यकता होगी। हर वर्ष कुल आहार उत्पादन का लगभग एक-तिहाई अर्थात 10 खरब अमरीकी डॉलर मूल्य का 1.3 अरब टन आहार उपभोक्ताओं और दुकानदारों के कचरों के डिब्बों में सड़ता है अथवा परिवहन और फसल कटाई के खराब तरीकों के कारण बर्बाद हो जाता है। एक अरब से अधिक लोगों को अब भी ताजा पानी सुलभ नहीं है। दुनिया में 3% से भी कम पानी ताजा यानी पीने लायक है और उसमें से 2.5% अंटार्कटिक आर्कटिक और हिमनदों में जमा हुआ है। इसलिए इंसानों की सभी पारिस्थितिकी तथा ताजे पानी की जरूरतों के लिए हमें सिर्फ 0.5% का ही सहारा है। टैक्नॉलॉजी की उन्नति से ऊर्जा के कुशल इस्तेमाल को बढ़ावा मिला है। इसके बावजूद ओईसीडी देशों में 2020 तक ऊर्जा का उपयोग 35% और बढ़ जाएगा।
संवहनीय उपभोग और उत्पादन का उद्देश्य है-कम साधनों से अधिक और बेहतर लाभ उठाना, संसाधनों का उपयोग, विनाश और प्रदूषण कम करके आर्थिक गतिविधियों से जन कल्याण के लिए कुल लाभ बढ़ाना और जीवन की गुणवत्ता में सुधार करना। सतत् विकास तभी हासिल किया जा सकता है, जब हम न सिर्फ अपनी अर्थव्यवस्थाओं में वृद्धि होने दें, बल्कि उस प्रक्रिया में बर्बादी को कम से कम होने दें। पर्यावरण को दूषित करने वाली वृद्धि, विकास को पीछे धकेल देती है।
संवहनीय उपभोग और उत्पादन का अर्थ है संसाधनों और ऊर्जा के कुशल प्रयोग को प्रोत्साहन, टिकाऊ बुनियादी सुविधाएं, सबके लिए बुनियादी सेवाओं, प्रदूषण रहित और उत्कृष्ट नौकरियां तथा अधिक गुणवत्तापूर्ण जीवन की सुलभता। इन सब पर अमल से कुल मिलाकर विकास योजनाओं को साकार करने में मदद मिलती है, भविष्य की आर्थिक. पर्यावरणीय और सामाजिक लागत कम होती है, आर्थिक स्पर्धा क्षमता मजबूत होती है और गरीबी में कमी आती है। इसके लिए उत्पादक से लेकर अंतिम उपभोक्ता तक आपूर्ति श्रृंखला में सक्रिय प्रत्येक कारक के बीच सोचे-समझे दृष्टिकोण एवं सहयोग की भी आवश्यकता होती है। इसके लिए जागरूकता बढ़ाने तथा संवहनीय खपत और जीवन शैली के बारे में, उपभोक्ताओं को शिक्षित करना जरूरी है। उपभोक्ताओं को मानकों एवं लेबलिंग के माध्यम से उपयुक्त सूचना दी जाए और संवहनीय सार्वजनिक खरीद से जोड़ा जाए। इसके लिए कारोबार, उपभोक्ताओं, नीति-निर्माताओं, शोधकर्ताओं, वैज्ञानिकों, दुकानदारों, मीडिया और विकास सहयोग एजेंसियों के बीच नई वैश्विक साझेदारी भी जरूरी है।
संसाधनों के उपयोग का मुद्दा देश के लिए महत्वपूर्ण है। भारत में दुनिया की 17.5% जनसंख्या निवास करती है पर उसके पास केवल 4% वैश्विक जल संसाधन है। कचरे और प्रदूषक तत्वों के उत्पत्ति भी एक चुनौती है। भारत ग्रीनहाउस गैसों का चौथा सबसे बड़ा उत्सर्जक है और विश्व का 5.3% उत्सर्जन करता है। किन्तु अक्तूबर, 2015 में भारत ने संकल्प लिया कि वह अपने सकल घरेलू उत्पाद की उत्सर्जन तीव्रता 2005 के स्तर से 2020 तक 20-25% और 2030 तक 33-35% कम करेगा। 2 अक्तूबर, 2016 को भारत ने ऐतिहासिक पेरिस समझौते का औपचारिक अनुमोदन कर दिया। राष्ट्रीय जैव ईंधन नीति और राष्ट्रीय स्वच्छ ऊर्जा निधि सरकार की कुछ प्रमुख योजनाएं हैं, जिनका उद्देश्य संवहनीय खपत और उत्पादन हासिल करना तथा प्राकृतिक संसाधनों के कुशल उपयोग का प्रबंधन करना है।
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