सतत विकास लक्ष्‍य 14 – जलीय जीवों की सुरक्षा

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जलीय जीवों की सुरक्षा सतत् विकास के लिए महासागरों, सागरों और समुद्री संसाधनों का संरक्षण और संवहनीय उपयोग

चुनौती

हम जमीन पर जीने वाले प्राणी हैं किन्‍तु महासागरों पर हमारी निर्भरता हमारी कल्‍पना से परे है। पृथ्‍वी की सतह के तीन चौथाई हिस्‍से में महासागर हैं जिनमें पृथ्‍वी का 97% जल है और जो परिमाण के हिसाब से पृथ्‍वी पर जीने की 99% जगह घेरे हुए हैं। 3 अरब से अधिक लोग अपनी आजीविका के लिए समुद्री और तटीय जैव विविधता पर निर्भर हैं। दुनिया भर में समुद्री और तटीय संसाधनों तथा उद्योगों का बाजार मूल्‍य प्रति वर्ष 30 खरब अमरीकी डॉलर या वैश्विक सकल घरेलू उत्‍पाद का करीब 5% होने का अनुमान है। महासागरों में करीब 2 लाख प्रजातियों की पहचान हो पाई है पर वास्‍तविक संख्‍या लाखों में हो सकती है। इंसान की पैदा की हुई करीब 30% कार्बन डाइऑक्‍साइड महासागर हज़म कर जाते हैं यानी विश्‍व की गर्म होती जलवायु का असर कम करते हैं। वे दुनिया में प्रोटीन के सबसे बड़े स्रोत भी हैं। 3 अरब से अधिक लोगों के लिए प्रोटीन के प्राथमिक स्रोत महासागर हैं। बिना निगरानी के मछली की पकड़ के कारण भी मछली की बहुत सी प्रजातियां तेजी से गायब हो रही हैं और वैश्विक मछली पालन और उससे जुड़े रोजगार को बचाने तथा पुराने रूप में वापस लाने के प्रयासों में बाधा पड़ रही है। इसके कारण महासागरों से मछली पकड़े जाने से होने वाली आमदनी हर वर्ष 50 अरब अमरीकी डॉलर घट रही है। दुनिया के लगभग 40% महासागर प्रदूषण, घटती मछलियों तथा तटीय पर्यावास के क्षय सहित इंसानी गतिविधियों से बुरी तरह प्रभावित हैं।

यह क्‍यों महत्‍वपूर्ण है?

तटीय और समुद्री संसाधन हर वर्ष विश्‍व की अर्थव्‍यवस्‍था में 280 खरब अमरीकी डॉलर का योगदान करते हैं। यह तो हमारी पृथ्‍वी के लिए इनके इतने महत्‍व का एक छोटा सा उदाहरण है। दुनिया के महासागर, उनका तापमान, रासायनिक संरचना, धाराएं और जीवन धरती को इंसान के जीने लायक बनाने वाली वैश्विक प्रणालियों के संचालक हैं। हमारी वर्षा का पानी, पेयजल, मौसम, जलवायु, तट रेखाएं, हमारा अधिकतर भोजन और जिस हवा में हम सांस लेते हैं उसकी ऑक्‍सीजन भी अंतत: सागर से आते हैं और उसके हाथों ही संचालित होते हैं। समूचे इतिहास में महासागर और सागर, व्‍यापार और परिवहन के महत्‍वपूर्ण साधन रहे हैं। इस आवश्‍यक वैश्विक संसाधन का सावधानी से प्रबंधन टिकाऊ भविष्‍य की एक प्रमुख विशेषता है।

इसका समाधान क्‍या है?

सतत् विकास लक्ष्‍य 14 के अंतर्गत देशों ने संकल्‍प लिया है कि हमारे महासागरों और उन पर निर्भर जीवन के संरक्षण की वास्‍तविक वैश्विक जिम्‍मेदारी को पूरा करने के लिए एकजुट होंगे। देशों ने संकल्‍प लिया है कि 2020 तक समुद्री पारिस्थितिकी का संवहनीय प्रबंधन हासिल कर लेंगे और उसके बाद के पांच वर्ष में हर तरह के समुद्री प्रदूषण में उल्‍लेखनीय कमी लाएंगे। इसके लिए एक अंतर्राष्‍ट्रीय वैज्ञानिक भागीदारी, मछली पकड़ने और निकालने का विनियमन और जलीय जीवन की रक्षा के लिए महत्‍वपूर्ण मुद्दों के बारे में अनुसंधान और ज्ञान को बढ़ाना जरूरी होगा।

भारत और लक्ष्‍य 14

भारत की एक-तिहाई से अधिक यानी 35% जनसंख्‍या उसकी विशाल तट रेखा पर रहती है और इसमें से करीब आधे तटीय क्षेत्रों का कटाव हो रहा है। समुद्र तट पर स्थित भारत के 3651 गांवों में 10 लाख से अधिक लोग समुद्र से मछली पकड़ने के रोजगार में लगे हैं। जैव विविधता समझौते के बारे में भारत की चौथी राष्‍ट्रीय रिपोर्ट 2009 के अनुसार भारत को अपार अंतर-देशीय और समुद्री जैव संसाधनों का वरदान है। यह दुनिया में मछली का सबसे बड़ा उत्‍पादक और अंतर-देशीय मछली का दूसरा सबसे बड़ा उत्‍पादक है। भारत सरकार की सागर माला परियोजना नीली क्रांति भी कहलाती है। इसके अंतर्गत भारत बंदरगाहों और तटवर्ती क्षेत्रों की हालत सुधारने का काम चल रहा है। समुद्री पारिस्थितिकी के संरक्षण के लिए सरकार ने जलीय पारिस्थितिकी संरक्षण की राष्‍ट्रीय योजना शुरू की है। भारत तटीय और समुद्री जैव विविधता के संरक्षण पर प्रमुखता से ध्‍यान दे रहा है।

उद्देश्‍य

  • 2025 तक, विशेषकर समुद्री मलबे और पोषक तत्‍वों के दूषण सहित जमीन पर होने वाली गतिविधियों के कारण हर तरह के समुद्री प्रदूषण की रोकथाम और उसमें उल्‍लेखनीय कमी करना।
  • 2020 तक, बहुत अधिक विपरीत प्रभावों से बचने के लिए समुद्री और तटीय पारिस्थितिकी का संवहनीय प्रबंधन और संरक्षण करना। इसके लिए उनकी आपदा सहने की शक्ति मजबूत करना तथा महासागरों को स्‍वस्थ और उत्पादक रखने के लिए उनके पुनर्जीवन हेतु कार्रवाई करना।
  • महासागरों के अम्लीकरण का प्रभाव कम से कम और दूर करना तथा इसके लिए सभी स्तरों पर वैज्ञानिक सहयोग बढ़ाना।
  • 2020 तक, मछली की पकड़ और सीमा से अधिक मछली निकालने, अवैध, बिना बताए और बिना किसी नियमन के मछली पकड़ने पर रोक लगाने और मछली पकड़ने के विनाशकारी तरीकों को खत्‍म करने तथा वैज्ञानिक प्रबंधन योजनाओं पर अमल करने के कारगर उपाय करना ताकि कम से कम व्‍यावहारिक समय में मछलियों के भंडार पहले की स्थिति में या कम से कम ऐसे स्तरों पर तो आएं जिनसे जैविक गुणों के अनुसार निर्धारित अधिकतम टिकाऊ पैदावार मिल सके।
  • 2020 तक, राष्‍ट्रीय और अंतर्राष्‍ट्रीय कानूनों के अनुरूप तथा सर्वोत्‍तम उपलब्‍ध वैज्ञानिक सूचना के आधार पर कम से कम 10% तटीय और समुद्री क्षेत्रों का संरक्षण करना।
  • 2020 तक, कुछ प्रकार की मछली पालन सब्सिडी पर रोक लगाना। इनके कारण सीमा से अधिक क्षमता और सीमा से अधिक मछली पकड़ने को बढ़ावा मिलता है, ऐसी सब्सिडी को समाप्‍त करना जिससे अवैध, बिना बताए और नियमन के बिना मछली पकड़ने में योगदान होता है तथा ऐसी नई सब्सिडी शुरू करने से बाज़ आना। ऐसा करते समय यह स्‍वीकार करना कि विकासशील और सबसे कम विकसित देशों के लिए उपयुक्‍त और असरदार विशेष तथा भिन्‍न प्रकार का व्‍यवहार विश्‍व व्‍यापार संगठन में मछली पालन सब्सिडी वार्ता का अभिन्‍न अंग होना चाहिए।
  • 2030 तक समुद्री संसाधनों के संवहनीय उपयोग से छोटे द्वीपीय विकासशील देशों और सबसे कम विकसित देशों के लिए आर्थिक लाभ बढ़ाना। इसके लिए मछली वाले क्षेत्रों का टिकाऊ प्रबंधन, एक्‍वाकल्‍चर और पर्यटन का टिकाऊ प्रबंधन करना शामिल है।
  • अंतर-सरकारी महासागरीय आयोग मानक और समुद्री टैक्‍नॉलॉजी सौंपने के बारे में दिशा-निर्देशों को ध्‍यान में रखते हुए वैज्ञानिक ज्ञान बढ़ाना, अनुसंधान क्षमता बढ़ाना, समुद्री टैक्‍नॉलॉजी के बारे में अनुसंधान क्षमता विकसित करना और उसे दूसरों को देना ताकि महासागरों का स्‍वास्‍थ्‍य सुधर सके और विकासशील देशों, खासकर छोटे द्वीपीय विकासशील देशों और सबसे कम विकसित देशों में विकासशील देशों के विकास में समुद्री जैव विविधता का योगदान बढ़ाया जा सके।
  • यूएनसीएलओएस में निर्दिष्‍ट अंतर्राष्‍ट्रीय कानून पर अमल के जरिए महासागरों और उनके संसाधनों का संरक्षण और संवहनीय उपयोग बढ़ाना। यूएनसीएलओएस महासागरों और उनके संसाधनों के संरक्षण तथा संवहनीय उपयोग के बारे में कानूनी ढांचा प्रदान करता है। द फ्यूचर वी वांट के अनुच्‍छेद 158 में यह बात साफ कही गई है।

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