सतत् विकास लक्ष्य 16 – शांति, न्याय और सशक्त संस्थाएं

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सतत् विकास के लिए शांतिपूर्ण एवं समावेशी समाजों को प्रोत्साहन, सब के लिए न्याय सुलभ कराना और सभी स्तरों पर असरदार, जवाबदेह और समावेशी संस्थाओं की रचना करना

चुनौती

हिंसा शायद, दुनिया भर में देशों के विकास, वृद्धि, खुशहाली और अस्तित्व के लिए सबसे महत्वपूर्ण और विनाशकारी चुनौती है। दुनिया के कुछ हिस्सों में, सशस्त्र संघर्षों के कारण हताहतों की संख्या बढ़ रही है, जिसके कारण देशों के भीतर और सीमाओं के पार, बड़े पैमाने पर विस्थापन और उसके परिणामस्वरूप विकट मानवीय संकट पैदा हो रहा है जिसका विपरीत असर हमारे विकास प्रयासों के हर पहलू पर पड़ रहा है। हिंसा के अन्य रूप – अपराध और यौन तथा जैंडर विशेष के साथ होने वाली हिंसा-भी विश्व के लिए चुनौती हैं। युवाओं की स्थिति विशेषकर शोचनीय है। दुनियाभर में होने वाली कुल हत्याओं में से 43% में 10 से 29 वर्ष की आयु के युवा शामिल होते हैं और सहारा के दक्षिण के अफ्रीकी देशों में 2010-2012 में  मानव तस्करी के 70% शिकार बच्चे थे। किंतु हिंसा और भी छद्म रूप ले सकती है। गैर-जवाबदेह कानूनी और न्यायिक प्रणालियों की संस्थागत हिंसा और लोगों को उनके मानव अधिकारों तथा बुनियादी स्वतंत्रताओं से वंचित करना भी हिंसा और अन्याय के ही रूप हैं। भ्रष्टाचार, रिश्वतखोरी, चोरी और कर वंचना के कारण विकासशील देशों को प्रति वर्ष 12.6 खरब अमरीकी डॉलर के लगभग नुकसान होता है जबकि इस राशि के उपयोग से बहुत बड़ी संख्या में लोगों को कम से कम छः वर्ष तक 1.90 अमरीकी डॉलर की अंतर्राष्ट्रीय गरीबी रेखा से ऊपर उठाया जा सकता है।

यह क्यों महत्वपूर्ण है?

2030 के लिए वैश्विक सतत् विकास एजेंडा के किसी भी पहलू को साकार करने की दिशा में पहले कदम की शुरुआत व्यक्तियों को सुरक्षा और मानव अधिकार लौटाने से होगी जिनके जीवन और बुनियादी स्वतंत्रताएं या तो सीधे हिंसा या न्याय पर संस्थागत प्रतिबंधों के कारण खतरे में हैं। 2015 तक अपने सहस्राब्दि विकास लक्ष्य हासिल नहीं कर पाने वाले वही देश हैं जो सशस्त्र संघर्ष और अस्थिरता को झेल रहे हैं।

इसका समाधान क्या है?

लक्ष्य 16, सतत् विकास के लिए शांतिपूर्ण और समावेशी समाजों के संवर्द्धन, सबके लिए न्याय की सुलभता के प्रावधान और सभी स्तरों पर जवाबदेह संस्थाओं के निर्माण को समर्पित है। राष्ट्रीय और वैश्विक संस्थाओं को अधिक पारदर्शी एवं असरदार होना होगा। इनमें स्थानीय प्रशासनिक और न्यायिक व्यवस्थाएं शामिल हैं, जो मानव अधिकारों, कानून और व्यवस्था तथा सुरक्षा की गारंटी के लिए बेहद महत्वपूर्ण हैं।

भारत और लक्ष्य 6

भारत में न्यायपालिका पर विचाराधीन मुकदमों का भारी बोझ है, हालाँकि मुकदमों का बोझ कुछ हलका हुआ है- 2014 में 41.5 लाख से घटकर 2015 में 38.5 लाख रह गया। भारत,  सरकार के अनेक प्रयासों के बल पर न्यायपालिका को सशक्त करने को प्राथमिकता दे रहा है।  इनमें जनशिकायत समाधान प्रणाली का प्रगति प्लेटफॉर्म और गाँवों में ग्राम न्यायालयों सहित न्यायपालिका के लिए बुनियादी सुविधाओं के विकास जैसे प्रयास शामिल हैं।

उद्देश्य

  • सभी स्थानों पर हिंसा के सभी रूपों और सम्बद्ध मृत्यु दरों में उल्लेखनीय कमी करना।
  • बच्चों को यातना और उनके साथ हिंसा के सभी रूपों, दुराचार, शोषण, और तस्करी को खत्म कराना।
  • राष्ट्रीय औऱ अंतर्राष्ट्रीय स्तरों पर कानून के शासन को प्रोत्साहन और सब के लिए न्याय की समान रूप से सुलभता सुनिश्चित करना।
  • 2030 तक, धन और हथियारों के अवैध प्रवाह में उल्लेखनीय कमी करना, चोरी हुई परिसम्पत्तियों को खोज निकालने और लौटाने की व्यवस्था सशक्त करना और हर प्रकार के संगठित अपराधों का सामना करना।
  • भ्रष्टाचार और ऱिश्वतखोरी के सभी रूपों में उल्लेखनीय कमी करना।
  • सभी स्तरों पर असरदार, जवाबदेह और पारदर्शी संस्थाओं को विकसित करना।
  • सभी स्तरों पर माँग के अनुरूप, समावेशी, भागीदार और प्रतिनिधित्वपूर्ण निर्णय प्रक्रिया सुनिश्चित करना।
  • वैश्विक प्रशासन तंत्र की संस्थाओं में विकासशील देशों की भागीदारी का दायरा बढ़ाना और सशक्त करना।
  • 2030 तक, जन्म पंजीकरण सहित, सबके लिए कानूनी पहचान देना।
  • राष्ट्रीय कानूनों और अंतर्राष्ट्रीय समझौतों के अनुरूप सूचना की सार्वजनिक सुलभता तथा बुनियादी स्वतंत्रताएं सुनिश्चित करना।
  • हिंसा रोकने और आतंकवाद तथा अपराध का सामना करने के लिए, खासकर विकासशील देशों में सभी स्तरों पर क्षमता निर्माण के लिए अंतर्राष्ट्रीय सहयोग के माध्यम सहित सम्बद्ध राष्ट्रीय संस्थाओं को सशक्त करना।
  • सतत् विकास के लिए भेदभाव-विहीन कानूनों और नीतियों को लागू औऱ प्रोत्साहित करना।

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