सतत विकास लक्ष्‍य 17 – लक्ष्‍य हेतु भागीदारी

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क्रियान्‍वयन के साधनों को सशक्‍त करना और सतत विकास के लिए वैश्विक साझेदारी को नई शक्ति देना

चुनौती

यही वह चुनौती है जो अन्‍य सभी 16 लक्ष्‍यों के बारे में हमारे प्रयासों को एकजुट करती है। एक महत्‍वाकांक्षी और परस्‍पर जुड़े हुए वैश्विक विकास एजेंडा के लिए नई वैश्विक भागीदारी आवश्‍यक है। इसमें विकास के लिए धन की व्‍यवस्‍था करना, लोगों को सूचना प्रौद्योगिकी नेटवर्क के जरिए जोड़ना, अंतर्राष्‍ट्रीय व्‍यापार प्रवाह की व्‍यवस्‍था करना और आँकड़ों के संकलन एवं विश्‍लेषण को पुष्‍ट करना शामिल है। जब दुनिया वैश्विक विकास के लिए एकजुट हो रही है, तब भी 2014 में सरकारी विकास सहायता 135.2 अरब अमरीकी डॉलर थी, जो तब तक का सबसे ऊंचा स्‍तर था। अब तक सिर्फ 7 देशों ने अपनी सकल राष्‍ट्रीय आय का 0.7% सरकारी विकास सहायता के रूप में देने का संयुक्‍त राष्‍ट्र का लक्ष्‍य पूरा किया है। वैसे तो दुनिया भर के लोग भौतिक और डिजिटल नेटवर्क के जरिए करीब आए हैं, लेकिन 4 अरब से अधिक लोग इंटरनेट का उपयोग नहीं करते और उनमें से 90% विकासशील देशों में हैं। इंटरनेट के उपयोग में जैंडर भेद सबसे कम विकसित देशों में 29% तक जाता है।

यह क्‍यों महत्‍वपूर्ण है?

एक सफल सतत् विकास एजेंडा के लिए सरकारों, निजी क्षेत्र और प्रबुद्ध समाज के बीच भागीदारी आवश्‍यक है। यह 17 महत्‍वाकांक्षी लक्ष्‍य और इनके निशाने पर मौजूद जटिल चुनौतियां न तो क्षेत्रों के निश्चित दायरे में और न ही राष्‍ट्रीय सीमाओं के भीतर सिमटे होते हैं। जलवायु परिवर्तन वैश्विक चुनौती है और उसका सामना करने के लिए कारोबार जगत भी उतना ही महत्‍वपूर्ण योगदान कर सकता है, जितनी की सरकारें। विश्‍वविद्यालयों और वैज्ञानिकों के बिना नए आविष्‍कार और नई सोच नहीं पनप सकते और महाद्वीपों के बीच ज्ञान के आदान-प्रदान के बिना तो ऐसा बिल्‍कुल नहीं हो सकता। लैंगिक समानता के लिए जितना कानूनी प्रावधान जरूरी है, उतना ही जरूरी समुदाय का सहयोग है। यदि हमारी महामारियां वैश्विक हैं तो उनके समाधान भी वैश्विक हैं। समावेशी भागीदारियां साझी सोच और साझे लक्ष्‍यों की बुनियाद पर खड़ी होती हैं, जो लोगों और पृथ्‍वी को केन्‍द्र में रखती हैं और वैश्विक, क्षेत्रीय, राष्‍ट्रीय तथा स्‍थानीय स्‍तर पर जरूरी हैं।

इसका समाधान क्‍या है?

सतत् विकास लक्ष्‍यों को हासिल करने के लिए खरबों डॉलर के निजी संसाधनों की काया पलट ताकत जुटाने, पुनःनिर्देशित करने और बंधन मुक्‍त करने हेतु तत्‍काल कार्रवाई करनी होगी। विशेषकर विकासशील देशों में महत्‍वपूर्ण क्षेत्रों में प्रत्‍यक्ष विदेशी निवेश सहित दीर्घकालिक निवेशों की जरूरत है। इनमें संवहनीय ऊर्जा, बुनियादी सुविधाएं और परिवहन तथा सूचना और संचार प्रौद्योगिकी शामिल हैं। निजी क्षेत्र को एक स्‍पष्‍ट दिशा निर्धारित करनी होगी। ऐसे निवेशों में सहायक, समीक्षा और निगरानी के तंत्रों, विनियम और प्रोत्‍साहक संरचनाओं को नए साधन देने होंगे ताकि निवेश आकर्षित कर सकें और सतत विकास को पुष्‍ट कर सकें। सर्वोच्‍च ऑडिट संस्‍थाओं जैसे राष्‍ट्रीय निगरानी तंत्र और विधायिका द्वारा निगरानी के कामकाज को पुष्‍ट किया जाना चाहिए।

भारत और लक्ष्‍य 17

भारत सरकार इस नई वैश्विक भागीदारी की एक महत्‍वपूर्ण अंग है और इस भागीदारी को क्षेत्र के भीतर और दुनिया के साथ नेटवर्क कायम करने के देश के प्रयासों से शक्ति मिली है। विकासशील देशों के बीच सहयोग इसका एक महत्‍वपूर्ण अंग है। शंघाई सहयोग संगठन, ब्रिक्‍स और उसके नए विकास बैंक तथा दक्षिण एशियाई क्षेत्रीय सहयोग संघ जैसी संस्‍थाओं के साथ-साथ संयुक्‍त राष्‍ट्र एजेंसियों और विश्‍व भर में ऐसे कार्यक्रमों में भारत की सदस्‍यता और नेतृत्‍व भी उतने ही महत्‍वपूर्ण हैं।

उद्देश्‍य

वित्‍त

  • विकासशील देशों के लिए अंतर्राष्‍ट्रीय समर्थन सहित घरेलू संसाधन जुटाने की व्‍यवस्‍था को मजबूत करना जिससे कर और अन्‍य राजस्‍व संकलन के लिए देशों की क्षमता में सुधार हो सके।
  • विकसित देशों द्वारा सरकारी विकास सहायता के अपने संकल्‍पों को पूरा करना। इसमें अनेक विकसित देशों का यह संकल्‍प शामिल है कि वे अपनी सकल राष्‍ट्रीय आय का 0.7% सरकारी विकास सहायता के रूप में विकासशील देशों को और 0.15% से 0.20% तक सबसे कम विकसित देशों को देने का लक्ष्‍य हासिल करेंगे। सरकारी विकास सहायता देने वालों को प्रोत्‍साहित किया जाता है कि वे अपनी सकल राष्‍ट्रीय आय का कम से कम 0.20% हिस्सा सरकारी विकास सहायता के रूप में सबसे कम विकसित देशों को देने का लक्ष्‍य तय करने पर विचार करें।
  • विकासशील देशों के लिए एकाधिक स्रोतों से अतिरिक्‍त वित्‍तीय संसाधन जुटाना।
  • विकासशील देशों को समन्वित नीतियों के माध्‍यम से दीर्घकालिक ऋण संवहनीयता हासिल करने में सहायता देना। इसका उद्देश्‍य यथाउपयुक्‍त ऋण के लिए वित्‍त की व्‍यवस्‍था, ऋण राहत और ऋण की शर्तों में फेरबदल करना तथा अत्‍यधिक कर्जदार गरीब देशों पर ऋण का बोझ कम करने के लिए विदेशी ऋण की समस्‍या का समाधान करना है।
  • सबसे कम विकसित देशों के लिए निवेश संवर्धन व्‍यवस्‍थाएं अपनाना और लागू करना।

टैक्‍नॉलॉजी

  • विज्ञान, प्रौद्योगिकी तथा नवाचार की सुलभता और उनके बारे में विकसित और विकासशील देशों के बीच, विकासशील देशों के बीच तथा त्रिकोणीय अंतर्राष्‍ट्रीय सहयोग बढ़ाना तथा परस्‍पर सहमत शर्तों के आधार पर अधिक से अधिक ज्ञान बांटना। इसके लिए खासतौर पर संयुक्‍त राष्‍ट्र स्‍तर पर मौजूदा तंत्रों के बीच समन्‍वय सुधारना और वैश्विक टैक्‍नॉलॉजी सहायता तंत्र की व्‍यवस्‍था करना आवश्‍यक होगा।
  • विकासशील देशों को परस्‍पर सहमति के आधार पर रियायती और वरीयता वाली शर्तों सहित हितकारी शर्तों पर पर्यावरण की दृष्टि से अनुकूल टैक्‍नॉलॉजी के विकास, हस्‍तांतरण, प्रसार और समन्‍वय को प्रोत्‍साहित करना।
  • टैक्‍नॉलॉजी बैंक और विज्ञान, टैक्‍नॉलॉजी तथा नवाचार क्षमता निर्माण तंत्र को 2017 तक सबसे कम विकसित देशों के लिए पूरी तरह क्रियान्वित करना तथा खासकर सूचना और संचार टैक्‍नॉलॉजी सहित सामर्थ्‍यकारी टैक्‍नॉलॉजी के उपयोग को बढ़ावा देना।

क्षमता निर्माण

  • विकासशील देशों में असरदार और लक्षित क्षमता निर्माण की व्‍यवस्‍था करने के लिए अंतर्राष्‍ट्रीय सहयोग बढ़ाना जिससे सभी सतत् विकास लक्ष्‍यों के लिए राष्‍ट्रीय योजनाओं को समर्थन मिल सके। इसमें विकसित और विकासशील देशों के बीच, विकासशील देशों के बीच और त्रिकोणीय सहयोग शामिल हैं।

व्‍यापार

  • विश्‍व व्‍यापार संगठन के अंतर्गत एक सार्वभौम, नियम आधारित, खुली, भेदभावहीन और बराबरी पर आधारित बहुपक्षीय व्‍यापार प्रणाली को प्रोत्‍साहित करना। इसमें दोहा विकास एजेंडा के अंतर्गत वार्ता संपन्‍न करना शामिल है।
  • विकासशील देशों के निर्यात में उल्‍लेखनीय वृद्धि करना, विशेषकर 2020 तक वैश्विक निर्यात में सबसे कम विकसित देशों की हिस्‍सेदारी दोगुनी करना।
  • सभी सबसे कम विकसित देशों के लिए विश्‍व व्‍यापार संगठन के फैसलों के अनुरूप हमेशा के लिए शुल्‍क मुक्‍त और कोटा मुक्‍त बाजार प्रवेश सुविधा को समय से लागू करना। इसमें यह सुनिश्चित करना होगा कि सबसे कम विकसित देशों से आयात पर लागू उत्‍पादन स्थल के वरीयता के नियम पारदर्शी और सरल हों तथा बाजार में उनका प्रवेश आसान करने में सहायक हों।

व्‍यवस्‍था संबंधी मुद्दे

नीति और संस्‍थागत सामंजस्‍य

  • नीतिगत समन्‍वय और नीतिगत सामंजस्‍य के जरिए वैश्विक वृहद आर्थिक स्थिरता बढ़ाना।
  • सतत विकास के लिए नीतिगत सामंजस्‍य बढ़ाना।
  • गरीबी उन्‍मूलन और सतत विकास के लिए नीतियां बनाने और लागू करने हेतु एक-दूसरे देश की नीतिगत क्षमता और नेतृत्‍व का सम्‍मान करना।

बहु-हितधारक भागीदारियां

  • सतत विकास के लिए वैश्विक भागीदारी बढ़ाना और उसके पूरक के रूप में ऐसी बहु-हितधारक भागीदारियां करना जो सभी देशों, खासकर विकासशील देशों में सतत विकास लक्ष्‍य हासिल करने में समर्थन देने के लिए जानकारी, विशेषज्ञता, टैक्‍नॉलॉजी एवं वित्‍तीय संसाधन जुटाएं और साझा करें।
  • भागीदारियों के अनुभव एवं संसाधन जुटाने की रणनीतियों की बुनियाद पर असरदार सार्वजनिक, सार्वजनिक-निजी और प्रबुद्ध समाज की भागीदारियों को प्रोत्‍साहन और बढ़ावा देना।

आँकड़े, निगरानी और जवाबदेही

  • 2020 तक सबसे कम विकसित देशों और छोटे द्वीपीय विकासशील देशों सहित सभी विकासशील देशों के लिए क्षमता निर्माण समर्थन बढ़ाना, जिससे राष्‍ट्रीय संदर्भों में उपयुक्‍त, आय, लिंग, आयु, नस्‍ल, जातीयता, प्रवासन की स्थिति, विकलांगता, भौगोलिक स्‍थान और अन्‍य विशेषताओं के आधार पर बंटे हुए अधिक गुणवत्‍ता वाले सामयिक और विश्‍वसनीय आंकड़ों की उपलब्‍धता में उल्‍लेखनीय वृद्धि हो सके।
  • 2030 तक सतत विकास के बारे में प्रगति के ऐसे पैमाने विकसित करने हेतु मौजूदा प्रयासों को आगे बढ़ाना जो सकल घरेलू उत्‍पाद के पूरक हों और विकासशील देशों में सांख्यिकीय क्षमता निर्माण को समर्थन दें।

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