एसडीजी ( सतत् विकास लक्ष्य) 2 – शून्य भुखमरी

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शून्य भुखमरी, खाद्य सुरक्षा और बेहतर पोषण हासिल करना तथा सतत् खेती को प्रोत्साहन

चुनौती

दुनिया में हर व्यक्ति का पेट भरने लायक पर्याप्त भोजन मौजूद होने के बावजूद आज हर नौ में से एक व्यक्ति भूखा रहता है। इन लाचार लोगों में से दो-तिहाई एशिया में रहते हैं। अगर हमने दुनिया की आहार औऱ कृषि व्यवस्थाओं के बारे में गहराई से नए सिरे से नहीं सोचा तो अनुमान है कि 2050 तक दुनियाभर में भूख के शिकार लोगों की संख्या दो अरब तक पहुँच जाएगी। दुनियाभर में, विकासशील क्षेत्र में अल्पोषित लोगों की संख्या में 1990 से लगभग आधे की कमी आई है। 1990-1992 में यह 23.3% थी जो 2014-2016 में 12.9% रह गई। किंतु 79.5 करोड़ लोग आज भी अल्पपोषित हैं

यह क्यों महत्वपूर्ण है?

आहार और खेती की स्थिति में सुधार के लिए काम करने का अन्य 16 सतत् विकास लक्ष्यों को हासिल करने पर बहुत अधिक असर पड़ सकता है। इससे जलवायु परिवर्तन का सामना करने, आर्थिक वृद्धि बढ़ाने और दुनियाभर के समाजों में शांति औऱ स्थिरता में योगदान करने में मदद मिल सकती है। इस समय हमारी मिट्टी, ताज़ा पानी, महासागर, वन और जैवविविधता, सबका तेज़ी से क्षय हो रहा है। जलवायु परिवर्तन से उन संसाधनों पर पहले से अधिक दबाव पड़ रहा है जिन पर हम निर्भर हैं और प्राकृतिक आपदाओं से जुड़े खतरे बढ़ रहे हैं। ग्रामीण महिलाएं और पुरुष जब अपनी ज़मीन से गुज़ारा नहीं चला पाते तो अवसरों की तलाश में मजबूरन शहरों में जा रहे हैं। प्राकृतिक आपदाओं का सामना करने की शक्ति पैदा करना दुनिया में भूख से संघर्ष का एक महत्वपूर्ण अंग है क्योंकि ऐसे संकटों से प्रभावित देशों में इनके कारण खाद्य सुरक्षा के मुद्दे गंभीर हो जाते हैं।

इसका समाधान क्या है?

2030 सतत् विकास एजेंडा के लक्ष्य 2 का उद्देश्य अगले 15 वर्ष में भूख और हर तरह के कुपोषण को मिटाना और खेती की उत्पादकता दोगुनी करना है। सबके लिए पौष्टिक आहार लगातार सुलभ कराने के लिए टिकाऊ आहार उत्पादन और खेती की विधियों की आवाश्यकता होगी।

भारत और लक्ष्य 2

दक्षिण एशिया पर भुखमरी का बोझ अब भी सबसे अधिक है। 28.1 करोड़ अल्पपोषित लोगों में भारत की 40 प्रतिशत आबादी शामिल है। हम अपना आहार कैसे उगाते औऱ खाते हैं इस सबका भूख के स्तर पर गहरा असर पड़ता है, पर ये बात यहीं खत्म नहीं हो जाती। अगर सही तरह से काम हो तो खेती और वन विश्व की आबादी के लिए आमदनी के अच्छे स्रोत, ग्रामीण विकास के संचालक और जलवायु परिवर्तन से हमारे रक्षक हो सकते हैं। खेती दुनिया में रोज़गार देने वाला अकेला सबसे बड़ा क्षेत्र है, दुनिया की 40% आबादी और भारत में कुल श्रमशक्ति के 54.6% हिस्से को खेती में रोज़गार मिला है।

देश की आधी से अधिक आबादी को रोज़गार देने के बावजूद भारत के जीडीपी में कृषि क्षेत्र का योगदान मात्र 15% है। भारत सरकार ने सिंचाई, फसल बीमा और बेहतर किस्मों के मामले में कदम उठाकर खेती को मज़बूत करने को प्राथमिकता दी है। सरकार ने खाद्य सुरक्षा बढ़ने के लिए भी महत्वपूर्ण कदम उठाए हैं। इनमें राष्ट्रव्यापी लक्षित सार्वजनिक वितरण प्रणाली, एक राष्ट्रीय पोषाहार मिशन और राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा कानून शामिल हैं। राष्ट्रीय कृषि विकास योजना, टिकाऊ खेती के बारे में राष्ट्रीय मिशन और बागवानी, कृषि टैक्नॉलॉजी और मवेशियों के बारे में अनेक राष्ट्रीय योजनाएं भारत में खेती की स्थिति सुधारने में अग्रणी भूमिका निभा रही हैं।

उद्देश्य

  • 2030 तक भुखमरी मिटाना और सभी लोगों, विशेषकर गरीब और शिशुओं सहित लाचारी की स्थिति में जीते लोगों को पूरे वर्ष सुरक्षित, पौष्टिक तथा पर्याप्त भोजन सुलभ कराने की व्यवस्था करना।
  • 2030 तक कुपोषण को हर रूप में मिटाना, जिसमें 5 वर्ष से छोटे बच्चों में बौनेपन और क्षीणता के बारे में अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर सहमत लक्ष्य 2025 तक हासिल करना शामिल है। इसके अलावा किशोरियों, गर्भवती एवं स्तनपान कराती माताओं तथा वृद्धजनों की पोशाहार की ज़रूरतों को पूरा करना।
  • 2030 तक खेतीकी उत्पादकता और खासकर महिलाओं, मूल निवासियों, पारिवारिक किसानों, चरवाहों और मछुआरों सहित लघु आहार उत्पादकों की आमदनी को दोगुना करना। यह काम ज़मीन तक पक्की और बराबर पहुँच, अन्य उत्पादक संसाधन औऱ कच्चा माल, जानकारी,वित्तीय सेवाएं, बाज़ार और मूल्य संवर्द्धन के लिए अवसर तथा गैर-कृषि रोज़गार सुलभ कराने के ज़रिए किया जाना है।
  • 2030 तक टिकाऊ आहार उत्पादन प्रणालियाँ सुनिश्चित करना और खेती की ऐसी जानदार विधियाँ अपनाना जिनसे उत्पादकता औऱ पैदावार बढ़े, पारिस्थितिक प्रणालियों के संरक्षण में मदद मिले, जलवायु परिवर्तन, कठोर मौसम, सूखे, बाढ़ और अन्य आपदाओं के अनुरूप ढलने की क्षमता मज़बूत हो औऱ जिनसे ज़मीन एवं मिट्टी की गुणवत्ता में निरंतर सुधार हो।
  • 2020 तक बीजों, उगाए गए पौधों, कारोबार के लिए पाले गए और पालतू पशुओं और उनकी संबंधित वन्य प्रजातियों की आनुवांशिक विविधता को राष्ट्रीय, क्षेत्रीय एवं अंतर्राष्ट्रीय स्तरों पर सुप्रबंधित एवं विविधिकृत बीच एवं पौध बैंकों के ज़रिए संरक्षित रखना तथा आनुवांशिक संसाधनों एवं संबद्ध पारम्परिक ज्ञान के उपयोग से उत्पन्न लाभों को अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर हुई सहमति के अनुसार निष्पक्ष एवं समान रूप से बांटना तथा सुलभता को प्रोत्साहित करना
  • पहले से अधिक अंतर्राष्ट्रीय सहयोग के सहित ग्रामीण बुनियादी ढाँचागत सुविधाओं , कृषि अनुसंधान और विस्तार सेवाओं, टैक्नॉलॉजी विकास और पौध एवं मवेशी जीन बैंकों में निवेश बढ़ाना जिससे विकासशील देशों , विशेषकर सबसे कम विकसित देशों में कृषि उत्पादकता क्षमता बढ़ सके।
  • व्यापार प्रतिबंधों और विश्व कृषि बाज़ारों में व्यापार प्रतिबंधों और विकृतियों को सुधारना और रोकना। इनमें दोहा विकास दौर में हुई सहमति के अनुरूप सभी प्रकार की कृषि निर्यात सब्सिडी और उसके बराबर प्रभाव वाले सभी निर्यात उपायों को समानान्तर रूप से समाप्त करना शामिल है
  • खाद्य जिन्स बाज़ार और उनके डेरिवेटिव्ज़ के सही ढंग से संचालन के उपाय अपनाना और सुरक्षित खाद्य भंडार सहित बाज़ार की जानकारी समय से सुलभ कराना जिससे खाद्य वस्तुओं के मूल्यों में बहुत अधिक उतार-चढ़ाव को सीमित करने में मदद मिल सके।

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