[vc_row][vc_column][vc_single_image image=”12373″ img_size=”full”][vc_column_text]
खराब स्वास्थ्य से कष्ट और सबसे बुनियादी प्रकार की वंचनाएं होती हैं। इतने वर्षों में लोगों की औसत आयु बढ़ाने और शिशु तथा मातृ मुत्यु के लिए ज़िम्मेदार कुछ सबसे आम बीमारियों को कम करने में उल्लेखनीय सफलताएं मिली हैं। वैश्विक प्रगति के बावजूद सहारा के दक्षिणी अफ्रीकी देशों और दक्षिणी एशिया क्षेत्र में शिशु मौतों का अनुपात बढ़ता जा रहा है। वर्ष 2000 के बाद से विश्व में एचआईवी/एड्स, मलेरिया और टीबी सहित प्रमुख संक्रामक रोगों का होना कम हुआ है, लेकिन विश्व के अनेक क्षेत्रों में ये बीमारियां और नई महामारियां अब भी बड़ी चुनौती हैं। हमने दुनियाभर में नए उपचारों, टीकों और स्वास्थ्य सेवा के लिए टैक्नॉलॉजी की खोज में ज़बर्दस्त प्रगति की है लेकिन सभी को किफायती स्वास्थ्य सेवा सुलभ कराना अब भी एक चुनौती है।
बीमारी केवल एक व्यक्ति की खुशहाली पर ही असर नहीं डालती बल्कि ये परिवार और जन संसाधनों पर बोझ बनती है, समाज को कमज़ोर औऱ क्षमता का ह्रास करती है। हर उम्र के लोगों का उत्तम स्वास्थ्य और खुशहाली सतत् विकास का केंद्र बिंदु है। बीमारी से बचाव न सिर्फ जीने के लिए ज़रूरी है अपितु ये सभी को अवसर देता है, आर्थिक वृद्धि और सम्पन्नता को बल देता है।
अंतर्राष्ट्रीय समुदाय ने सतत् विकास के तीसरे लक्ष्य के माध्यम से बीमारी को खत्म करने, उपचार व्यवस्था और स्वास्थ्य सेवा को मज़बूत करने, तथा स्वास्थ्य संबंधी नए और उभरते मुद्दों के समाधान के लिए वैश्विक प्रयासों का संकल्प लिया है। इसके लिए इन क्षेत्रों में नई सोच और अनुसंधान की आवश्यकता बताई गई है ताकि जन नीतिगत प्रयासों को आगे बढ़ाया जा सके। बेहतर स्वास्थ्य के प्रति समग्र दृष्टिकोण में सुनिश्चित करना होगा कि सभी को स्वास्थ्य सेवाएं सुलभ हों और दवाएं तथा टीके उनके साधनों के भीतर मिलें। इसमें मानसिक स्वास्थ्य से जुड़े मुद्दों पर नए तरीके से विचार किए जाने की ज़रूरत भी बताई गई है। 19 से 25 साल की उम्र के लोगों में आत्महत्या, दुनियाभर में मौत का दूसरा सबसे बड़ा कारण है। और आखिर में स्वास्थ्य और खुशहाली हमारे पर्यावरण की गुणवत्ता से करीब से जुड़े हैं, और लक्ष्य 3 का उद्देश्य वायु, जल, और मृदा प्रदूषण तथा दूषण से होनी वाली बीमारियों और मौतों की संख्या में भारी गिरावट लाना भी है।
भारत ने पांच साल से कम उम्र में बच्चों की मृत्यु दर घटाने में कुछ प्रगति की है। यह दर 1990 में प्रति एक हज़ार जीवित जन्म पर 125 थी जो 2013 में घटकर प्रति एक हज़ार जीवित जन्म पर 49 रह गई । मातृ मृत्यु दर 1990-91 में प्रति एक लाख जीवित शिशु प्रसव पर 437 थी जो 2009 में घटकर 167 रह गई। भारत ने ऐसे विभिन्न वर्गों में एचआईवी और एड्स का संक्रमण कम करने में भी महत्वपूर्ण प्रगति की है जिनमें इसके संक्रमण का खतरा अधिक रहता है। वयस्कों में इनका चलन 2002 में 0.45 प्रतिशत था जो 2011 में घटकर 0.27 प्रतिशत रह गया। दुनिया में टीबी (तपेदिक) के एक-चौथाई मामले भारत में होते हैं। यहां हर साल करीब 22 लाख लोगों में टीबी की पहचान होती है और इसके कारण लगभग 2 लाख 20 हज़ार लोगों की मौत हो जाती है। भारत सरकार का राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन, एचआईवी/एड्स और यौन संचारी रोगों से निपटने के लिए लक्षित राष्ट्रीय कार्यक्रमों के अतिरिक्त राष्ट्रीय खुशहाली को प्राथमिकता दे रहा है और इस क्षेत्र में बदलाव का नेतृत्व कर रहा है।
[/vc_column_text][/vc_column][/vc_row]