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लैंगिक असमानता, मानव इतिहास में अन्याय का एक सबसे निरन्तर और व्यापक रूप है, इसलिए इसे मिटाने के लिए बदलाव की दिशा में एक सबसे बड़े आंदोलन की आवश्यकता होगी। दुनिया के हर हिस्से में महिलाएं और लड़कियां आज भी भेदभाव और हिंसा झेल रही हैं। हर क्षेत्र में लैंगिक समानता के मामले में कमियां मौजूद हैं। दक्षिण एशिया में 1990 में प्राइमरी स्कूलों में हर 100 लड़कों पर सिर्फ 74 लड़कियां भर्ती होती थीं, लेकिन 2012 तक भी भर्ती का अनुपात वही था। 155 देशों में कम से कम एक कानून ऐसा मौजूद हैं, जो महिलाओं के लिए आर्थिक अवसरों में बाधक है। अधिकांश देशों में महिलाएं, पुरुषों को मिलने वाले वेतन की तुलना में औसतन सिर्फ 60% से 75% तक ही कमा पाती हैं। सभी देशों की संसदों में केवल 22.8% महिला सांसद हैं। हर तीन में से एक महिला अपने जीवन काल में किसी न किसी प्रकार की शारीरिक अथवा यौन हिंसा की शिकार होती है।
लैंगिक समानता न सिर्फ एक बुनियादी मानव अधिकार है, बल्कि एक शांतिपूर्ण और टिकाऊ विश्व के लिए आवश्यक बुनियाद भी है। महिलाओं को मुख्यधारा से बाहर रखने का मतलब दुनिया की आधी आबादी को संपन्न समाज और अर्थव्यवस्थाओं के निर्माण में भागीदारी के अवसर से वंचित रखना है। शिक्षा की समान सुलभता, लाभकारी काम और राजनीतिक तथा आर्थिक निर्णय प्रक्रिया में भागीदारी न सिर्फ महिलाओं के लिए आवश्यक अधिकार हैं, बल्कि इनसे कुल मिलाकर मानवता लाभान्वित होती है। महिलाओं के सशक्तिकरण में निवेश कर हम न सिर्फ सतत् विकास लक्ष्य 5 की दिशा में आगे बढ़ते हैं, बल्कि गरीबी कम करने में भी लाभ होता है तथा टिकाऊ आर्थिक वृद्धि को गति मिलती है।
लक्ष्य 5 का उद्देश्य सार्वजनिक और निजी क्षेत्रों में महिलाओं के प्रति हर तरह के भेदभाव और हिंसा को मिटाना तथा महिलाओं को आर्थिक संसाधनों पर समान अधिकार और संपत्ति में स्वामित्व देने के लिए सुधार करना है।
वैसे तो भारत ने प्राइमरी शिक्षा के स्तर पर लैंगिक समानता हासिल कर ली है और शिक्षा के सभी स्तरों में समानता हासिल करने के लिए सही दिशा में बढ़ रहा है, फिर भी अगस्त, 2015 तक संसद में महिलाओं को मिली सीटों का अनुपात सिर्फ 12% रहा, जबकि लक्ष्य 50% का है। भारत महिलाओं के प्रति हिंसा की चुनौती का सामना भी कर रहा है। उदाहरण के तौर पर एक बुनियादी अध्ययन से पता चला है कि नई दिल्ली में 92% महिलाओं ने अपने जीवन काल में सार्वजनिक स्थलों पर किसी न किसी रूप में यौन हिंसा का अनुभव किया है। भारत सरकार ने महिलाओं के प्रति हिंसा समाप्त करने को एक प्रमुख राष्ट्रीय प्राथमिकता माना है, जो लैंगिक समानता के बारे में संयुक्त राष्ट्र के सतत विकास उद्देश्यों का अंग है। प्रधानमंत्री की ‘बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ’ पहल का उद्देश्य भारत में लड़कियों को समान अवसर और शिक्षा देना है। इसके अलावा, महिलाओं के रोजगार के बारे में विशेष प्रयास, किशोरी बालिकाओं के सशक्तिकरण के कार्यक्रम, बालिका की संपन्नता के लिए सुकन्या समृद्धि योजना और माताओं के लिए जननी सुरक्षा योजना जैसे उपाय लैंगिक समानता और लक्ष्य 4 के उद्देश्यों के प्रति भारत के संकल्प को आगे बढ़ाते हैं।
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