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हर वर्ष लाखों लोग, अधिकतर बच्चे, अपर्याप्त जल आपूर्ति, स्वच्छता औऱ साफ-सफाई के कारण उत्पन्न बीमारियों से मरते हैं। अनुमान है कि 2050 तक दुनिया की एक-चौथाई आबादी संभवतः उन देशों में रहेगी जहाँ पानी की गंभीर और बार-बार कमी रहेगी। 1990 से ढाई अरब लोगों को बेहतर पेयजल सुलभ हुआ है, लेकिन अब भी 66.3 करोड़ लोग उससे वंचित हैं। 1990 से 2015 के बीच दुनिया में पेयजल के बेहतर स्रोत का इस्तेमाल करने वाली आबादी का अनुपात 76 प्रतिशत से बढ़कर 91 प्रतिशत हो गया फिर भी हर दिन करीब 1,000 बच्चे जल औऱ स्वच्छता से जुड़े अतिसार रोगों से मर जाते हैं, जबकि इन रोगों से आसानी से बचा जा सकता है।
स्वच्छ जल, जीवित रहने के लिए बेहद ज़रूरी है और उसके न होने का असर दुनिया भर में परिवारों के स्वास्थ्य, खाद्य सुरक्षा औऱ आजीविका पर पड़ सकता है। वैसे तो हमारी पृथ्वी पर नियमित रूप से स्वच्छ जल आपूर्ति के लिए पर्याप्त मात्रा में ताज़ा पानी है, किंतु गलत आर्थिक सोच और कमज़ोर बुनियादी सुविधाओं के कारण जल आपूर्ति के बंटवारे में असमानता आ सकती है। सूखे की मार दुनिया के कुछ सबसे गरीब देशों पर पड़ती है जिससे भुखमरी और कुपोषण की स्थिति और बिगड़ जाती है। प्राकृतिक आपदाओं से होने वाली कुल मौतों में से 70% बाढ़ और पानी से जुड़ी अन्य आपदाओं के कारण होती हैं। विश्वसनीय ऊर्जा, आर्थिक वृद्धि, आपदा सहने में सक्षम बुनियादी सुविधाओं, सतत् औद्योगीकरण, खपत औऱ उत्पादन तथा खाद्य सुरक्षा, सबका स्वच्छ जल की टिकाऊ आपूर्ति से अटूट संबंध है। पनबिजली ऊर्जा का एक सबसे महत्वपूर्ण औऱ व्यापक उपयोग होने वाला स्रोत है और 2011 तक दुनियाभर में कुल बिजली उत्पादन में 16% हिस्सेदारी इसकी है।
सतत् विकास लक्ष्यों ने अंतर्राष्ट्रीय समुदाय को इस बात के लिए संकल्पित कर दिया है कि वह जल एवं स्वच्छता से संबंद्ध गतिविधियों के बारे में अंतर्राष्ट्रीय सहयोग और कार्यक्रमों का विस्तार करे और जल एवं स्वच्छता प्रबंधन में सुधार के लिए स्थानीय समुदायों को समर्थन दे। लक्ष्य 6 के माध्यम से दुनिया के देशों ने संकल्प लिया है कि अगले 15 वर्ष में सुरक्षित पेयजल, और पर्याप्त स्वच्छता और साफ-सफाई की सुविधा सबके लिए सर्वत्र सुलभ कराएंगे।
भारत में बेहतर जल स्रोत तक पहुँच वाले परिवारों का कुल मिलाकर अनुपात 1992-93 में 68% था जो बढ़ कर 2011-12 में 90.6% हो गया था। फिर भी 2012 में 59% ग्रामीण परिवार और 8% शहरी परिवारों को बेहतर स्वच्छता सुविधाएं सुलभ नहीं थीं। भारत में लगभग 60 करोड़ लोग खुले में शौच करते हैं जो दुनिया में सबसे अधिक है। स्वच्छता में सुधार करना सरकार की एक प्रमुख प्राथमिकता है और इस दिशा में उसने अनेक प्रमुख कार्यक्रम शुरु किए हैं जिनमें स्वच्छ भारत अभियान, राष्ट्रीय ग्रामीण पेयजल कार्यक्रम और गंगा संरक्षण के लिए नमामि गंगे कार्यक्रम शामिल है।
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