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दुनिया भर में वार्षिक आर्थिक वृद्धि सन् 2000 में 3% थी, जो घटकर 2014 में 1.3% रह गई। दुनिया की करीब आधी आबादी अब भी प्रतिदिन 2 अमरीकी डॉलर के बराबर राशि में गुजारा कर रही है और अनेकानेक स्थानों पर रोजगार होना गरीबी से बचने की क्षमता की गारंटी नहीं है। इस धीमी और असामान्य प्रगति को देखते हुए हमें गरीबी मिटाने की अपनी आर्थिक और सामाजिक नीतियों पर नए सिरे से सोचकर नए साधनों का सहारा लेना होगा। वैश्विक बेरोजगारी 2007 में 17 करोड़ से बढ़ते-बढ़ते 2012 में करीब 20.2 करोड़ हो गई, जिसमें से करीब 7.5 करोड़ युवतियां और युवक हैं। उत्कृष्ट कार्य के अवसरों का निरंतर अभाव, अपर्याप्त निवेश और सामान्य से कम खपत के परिणामस्वरूप लोकतांत्रिक समाजों में निहित इस बुनियादी सामाजिक सिद्धांत का क्षय हुआ है कि प्रगति में सबकी हिस्सेदारी अनिवार्य है। गुणवत्तापूर्ण रोजगार का सृजन लगभग सभी अर्थव्यवस्थाओं के लिए 2015 के बाद भी बड़ी चुनौती रहेगा। किन्तु समावेशी वृद्धि में सबसे लाचार वर्गों अर्थात बच्चों, युवाओं और महिलाओं की आवश्यकताओं को भी ध्यान में रखना होगा। 2012 में दुनिया भर में 8.5 करोड़ बच्चे खतरनाक प्रकार के काम कर रहे थे।
वैसे तो विकासशील देशों की वृद्धि दर विकसित क्षेत्रों में तुलना में अधिक त्वरित रही है फिर भी हर जगह सतत आर्थिक वृद्धि अगले 15 वर्ष में हमारे अंतर्राष्ट्रीय विकास उद्देश्यों को पूरा करने के लिए महत्वपूर्ण होगी। आर्थिक वृद्धि यानी हमारी दुनिया को अधिक संपन्न बनाने वाली वृद्धि का हमारी अन्य सभी प्राथमिकताओं से अटूट संबंध है। अधिक सशक्त अर्थव्यवस्थाओं में हमें अधिक जानदार और टिकाऊ विश्व की रचना करने के अधिक अवसर मिलेंगे। आर्थिक वृद्धि का समावेशी होना अनिवार्य है, जो वृद्धि समाज के सभी वर्गों, खासकर सबसे लाचार वर्गों की खुशहाली नहीं बढ़ाती वह असमान और अनुचित है।
2030 के लिए सतत् विकास एजेंडा का मूल मंत्र है ‘कोई पीछे छूटने न पाए’। यदि आर्थिक वृद्धि को अधिक निष्पक्ष विश्व की रचना करनी है, तो उसे समावेशी होना होगा। लक्ष्य 8 के पीछे यही सोच है। इसका उद्देश्य 2030 तक सबसे कम विकसित देशों के लिए निरन्तर 7% की आर्थिक वृद्धि दर कायम रखना और अगले 15 वर्ष में हर जगह सभी पुरुषों और महिलाओं के लिए पूर्ण एवं उत्पादक रोजगार हासिल करना है। करीब 2.2 अरब लोग 2 अमरीकी डॉलर की गरीबी रेखा से नीचे गुजारा करते हैं और गरीबी का उन्मूलन तभी संभव है, जब स्थायी और अच्छे वेतन वाली नौकरियां हों। ऐसा अनुमान है कि 2016 और 2030 के बीच श्रम बाजार में प्रवेश करने वाले नए लोगों के लिए दुनिया भर में 47 करोड़ रोजगार की जरूरत होगी।
जहां विश्व अर्थव्यवस्था धीरे-धीरे उबर रही है, वहीं अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष के अनुसार भारत में जबर्दस्त वृद्धि के साथ वास्तविक आमदनी बढ़ रही है। इस वृद्धि के लाभों को उसके निवासी सहारा देंगे। 10 और 24 वर्ष की आयु के बीच 36 करोड़ से अधिक युवाओं के साथ भारत में दुनिया की सबसे युवा आबादी निवास करती है। इस जनांककीय लाभ के उपयोग पर ही देश के लिए संपन्न और जानदार भविष्य की रचना का सारा दारोमदार है। किन्तु उच्चतर शिक्षा में भारत का सिर्फ 23% का सकल भर्ती अनुपात दुनिया में सबसे कम अनुपातों में से एक है। भारत में श्रम शक्ति हर वर्ष 80,00,000 से अधिक बढ़ जाने का अनुमान है और इस देश को अब से लेकर 2050 तक 28,00,00000 रोजगार जुटाने की जरूरत होगी, जो उपरोक्त मौजूदा स्तरों में एक-तिहाई वृद्धि होगी। राष्ट्रीय कौशल विकास मिशन, दीन दयाल उपाध्याय अंत्योदय योजना, राष्ट्रीय सेवा योजना और महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना जैसे सरकार के कुछ प्रमुख कार्यक्रमों का उद्देश्य सबके लिए उत्कृष्ट कार्य जुटाना है।
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