शिक्षा और रोजगारपरकता

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भारत में विश्व के सर्वाधिक युवा बसते हैं। यहां लगभग एक तिहाई व्यक्तियों की उम्र 15 से 29 वर्ष के बीच है। विश्व में सर्वाधिक युवा देश के रूप में भारत ने रिकॉर्ड कायम किया है, चूंकि यहां की 64% जनसंख्या श्रमशील आयु वर्ग में आती है। 2020 तक देश की औसत आयु 29 वर्ष होगी।

भारत ने सर्व शिक्षा अभियान (सभी के लिए शिक्षा) कार्यक्रम और निशुल्क एवं अनिवार्य शिक्षा बाल अधिकार (आरटीई) अधिनियम जैसे उल्लेखनीय कानून को लागू करके शिक्षा तक सबकी पहुंच सुनिश्चित करने में महत्वपूर्ण प्रगति की है। प्राथमिक शिक्षा में लगभग सार्वभौमिक दाखिला हो चुका है और ग्रामीण क्षेत्रों के लगभग सभी बच्चों की पहुंच प्राथमिक स्कूलों तक हो चुकी है जोकि उनके घरों के एक किलोमीटर के दायरे में स्थित हैं। 2009 में जहां स्कूली सुविधा से वंचित बच्चों की संख्या आठ मिलियन थी, वहीं 2014 में उसकी संख्या गिरकर छह मिलियन हो गई है।

चुनौतियां

इन उपलब्धियों के बावजूद अनेक चुनौतियां कायम हैं। शिक्षा की उपलब्धता की चुनौती के बाद अब उत्तम शिक्षण और समानता को सुनिश्चित करने की जरूरत है। भारत में लगभग एक तिहाई बच्चे प्राथमिक शिक्षा पूरी होने से पहले ही स्कूल छोड़ देते हैं। जो बच्चे स्कूल नहीं जाते, उनमें से अधिकतर अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जनजातियों सहित कमजोर और सीमांत तबकों, धार्मिक अल्पसंख्यक समूहों के बच्चे और विकलांग बच्चे होते हैं। इस बात के प्रमाण भी मिले हैं कि बच्चे अपेक्षित स्तर तक नहीं सीख पाते। राष्ट्रीय शैक्षिक अनुसंधान और प्रशिक्षण परिषद द्वारा संचालित राष्ट्रीय उपलब्धि सर्वेक्षण 2015 के अनुसार कक्षा 5 के आधे से भी कम विद्यार्थी रीडिंग कॉम्प्रेहेंशन और गणित के प्रश्नों के उत्तर नहीं दे पाए। आरटीई अधिनियम और सतत विकास लक्ष्यों (एसडीजीज़) के उद्देश्यों को हासिल करने के लिए यह अनिवार्य है कि बच्चों को उत्तम दर्जे की शुरुआती शिक्षा प्राप्त हो क्योंकि यह जीवनपर्यन्त शिक्षण का आधार होती है। आंकड़े बताते हैं कि 3 से 6 वर्ष के 70% से अधिक बच्चे स्कूल पूर्व की शिक्षा हासिल कर रहे हैं। हालांकि यह अपेक्षाकृत अधिक है लेकिन इसका अर्थ यह भी है कि लगभग 20 मिलियन बच्चों को स्कूल पूर्व की शिक्षा नहीं मिल रही, खासकर गरीब परिवारों और ग्रामीण क्षेत्रों में रहने वाले बच्चों को। जब बच्चे स्कूल पूर्व की अच्छी शिक्षा हासिल किए बिना सीधे प्राथमिक स्कूल में दाखिला लेते हैं तो स्कूली तैयारी के अभाव में उनके स्कूल छोड़ देने की आशंका अधिक होती है। वे अपनी पूर्ण क्षमता के हिसाब से नहीं सीख पाते। यह बहुत कुछ इस बात निर्भर करता है कि उन्होंने किस प्रकार शिक्षा की शुरुआत की है और उन्हें स्कूली शिक्षा के लिए किस प्रकार तैयार किया गया है।

इसके अतिरिक्त इतनी बड़ी श्रमशील जनसंख्या का लाभ उठाने के लिए भारत को न सिर्फ शिक्षा की गुणवत्ता में सुधार करना होगा, बल्कि रोजगार अवसरों का सृजन भी करना होगा। साथ ही श्रमशक्ति में महिलाओं की भागीदारी को बढ़ाने पर ध्यान देना होगा। युवाओं को प्रोत्साहित करते हुए नीति निर्माण में उन्हें भागीदार बनाना होगा, खास तौर से उन क्षेत्रों में जिनका सीधा असर उनके भविष्य पर पड़ता है। वर्तमान में देश की सकल राष्ट्रीय आय में युवा आबादी का योगदान 34% है।

भारत सरकार के कार्यक्रम और पहल

एसडीजीज़ के समानांतर युवाओं के सशक्तीकरण के लिए भारत सरकार का दृष्टिकोण राष्ट्रीय युवा नीति 2014 में परिलक्षित होता है। सरकार रोजगार बाजार में युवाओं की पूर्ण भागीदारी और उन्हें रोजगार सेवाओं का लाभ उपलब्ध कराने के लिए कई प्रकार की पहल कर रही है। उसने ग्रामीण युवाओं, विशेष रूप से गरीबी रेखा के नीचे जीवनयापन करने वाले, अनुसूचित जाति और आदिवासी युवाओं की क्षमता बढ़ाने के लिए दक्षता विकास कार्यक्रमों की शुरुआत की है।

संयुक्त राष्ट्र का सहयोग

यूनिसेफ और यूनेस्को ने समावेशी उत्तम शिक्षा और रोजगारपरकता पर प्राथमिक समूह का गठन किया है। इस समूह में एफएओ, आईओएम, यूएनएड्स, यूएनडीपी, यूएनईपी, यूएनएफपीए, यूएन विमेन, यूएनओडीसी, डब्ल्यूएफपी और यूएन हैबिटैट शामिल हैं। इस समूह का लक्ष्य 6 से 14 वर्ष के सभी बच्चों के लिए उत्तम शिक्षा को राष्ट्रीय प्राथमिकता बनाने में सरकार का सहयोग करना है। जिन क्षेत्रों में सहयोग किया जाएगा, उनमें कमजोर और वंचित समूहों के बच्चों तक पहुंचना, अंतरराष्ट्रीय स्तर पर उत्तम पद्धतियों को अपनाना तथा सामुदायिक कार्यकर्ताओं द्वारा उत्तम शिक्षा की मांग को समर्थन देना शामिल है।

यूनिसेफ ने चाइल्ड फ्रेंडली स्कूल्स एंड सिस्टम्स (सीएफएसएस) के मार्गदर्शक सिद्धांतों के विकास में सहयोग प्रदान किया है जो मानव संसाधन विकास मंत्रालय द्वारा स्वीकृत है। सीएफएसएस को 2014 में प्रारंभ किया गया था। स्कूल बच्चों के लिए मित्रवत हों, इसके लिए सीएफएसएस संकेतकों को राज्य योजनाओं में एकीकृत करने हेतु सहयोग प्रदान किया गया है। साथ ही उन्हें इस सिस्टम की निगरानी करने के टूल्स भी दिए गए हैं।

इसके अतिरिक्त विश्व व्यापी पहल के रूप में यूनेस्को-यूआईएस और राष्ट्रीय शैक्षिक योजना एवं प्रशासन विश्वविद्यालय के सहयोग से भारत पर केंद्रित ‘आउट ऑफ स्कूल चिल्ड्रन’ नाम की एक रिपोर्ट तैयार की गई। इससे स्कूली शिक्षा से वंचित बच्चों के प्रोफाइल को समझने में मदद मिली। साथ ही यह भी पता चला कि इन बच्चों की संख्या का अनुमान लगाने में किस प्रकार की समस्याएं होती हैं। ये समस्याएं डेटा, परिभाषा और सांख्यिकी से जुड़ी हुई हैं।

यूनेस्को के सहयोग से यूनिसेफ प्रमोटिंग द राइट्स ऑफ डिसेब्ल्ड चिल्ड्रेन टू क्वालिटी एजुकेशन नाम से एक परियोजना चला रहा है जिसे यूएन पार्टनरशिप टू प्रमोट द राइट्स ऑफ पर्सन्स विद डिसेबिलिटीज का अनुदान प्राप्त है। इस परियोजना के तहत यूनिसेफ प्राथमिक शिक्षा के पाठ्यक्रम को विकलांग बच्चों के अनुकूल बनाने और इस संबंध में शिक्षकों का क्षमता निर्माण करने में राज्यों की सहायता कर रहा है।

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