पोषण और खाद्य सुरक्षा

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भारत ने अल्प पोषण और कुपोषण की दरों में तेजी से सुधार किया है। 2006 से 2016 के दौरान पांच वर्ष से छोटे बच्चों में स्टंटिंग की दर 48% से घटकर 38% हो गई। इसके बावजूद विश्व के जिन देशों में सर्वाधिक अल्प पोषित बच्चे हैं, उनमें से एक भारत भी है। अल्प पोषण से बच्चों का स्वास्थ्य और विकास तथा स्कूलों में उनका प्रदर्शन एवं वयस्कों की उत्पादकता अत्यंत प्रभावित होती है।

चुनौतियां

भारत में लगभग 195 मिलियन अल्प पोषित लोग रहते हैं। अगर अंतरराष्ट्रीय स्तर पर देखा जाए तो विश्व की एक चौथाई अल्प पोषित आबादी भारत में ही बसती है। भारत में 47 मिलियन या हर 10 में से 4 बच्चों में पूर्ण मानव क्षमता नहीं है, जिसका कारण गंभीर अल्प पोषण या स्टंटिंग है। स्टंटिंग से सीखने की क्षमता प्रभावित होती है, स्कूल में बच्चा अच्छा प्रदर्शन नहीं कर पाता, आय पर असर होता है और गंभीर बीमारियों की आशंका होती है। इसका असर कई पीढ़ियों पर पड़ता है, क्योंकि कुपोषित बालिकाएं और महिलाएं अक्सर कमजोर शिशुओं को जन्म देती हैं। इसके अतिरिक्त भारत में बच्चों और किशोरों में वजन बढ़ने और मोटापे की समस्या भी बढ़ी है जिसके कारण वयस्क होने पर उन्हें आजीवन गैर संचारी रोग होने का खतरा होता है।

सरकार व्यापक स्तर पर खाद्य सुरक्षा और गरीबी विरोधी कार्यक्रम संचालित करती है लेकिन इनसे लाभान्वित होने और लाभान्वित न होने वालों के बीच बहुत बड़ा अंतर है। महिलाएं और बालिकाएं विशेष रूप से नुकसान में रहती हैं। देश खाद्यान्न के लिहाज से आत्मनिर्भर तो हो गया है लेकिन नई चुनौतियां भी सामने आई हैं। भारत में कृषि भूमि का बहुत बड़ा हिस्सा उर्वरकों के असंतुलित प्रयोग और यूरिया के अत्यधिक उपयोग के कारण बंजर हो रहा है।

भारत सरकार के कार्यक्रम और पहल

1950-51 में भारत में 50 मिलियन टन खाद्यान्न उत्पादन होता था। 2014-15 में इसमें पांच गुना वृद्धि हुई और यह 250 मिलियन टन हो गया। इसके साथ ही खाद्यान्न के आयात पर निर्भर रहने वाला भारत आज खाद्यान्न निर्यातक देश बन चुका है। 2016 में सरकार ने जिन कार्यक्रमों की शुरुआत की, उनमें 2022 तक किसानों की आय को दुगुना करने के लिए अनेक कार्यक्रम भी शामिल थे। ये कार्यक्रम विशेष रूप से वर्षा पर निर्भर रहने वाले कृषि क्षेत्रों में उत्पादकता बढ़ाने की दिशा में आने वाली बाधाओं को दूर करते हैं। इनमें राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा मिशन, राष्ट्रीय कृषि विकास योजना (आरकेवीवाई), एकीकृत तिलहन, दलहन, पाम तेल और मक्का योजनाएं (इसोपॉम), प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना, ई-मार्केटप्लेस शामिल हैं। इसके अतिरिक्त 2017 तक कुल सिंचित क्षेत्र को 90 मिलियन से 103 मिलियन करने के लिए व्यापक सिंचाई और मृदा एवं जल संचयन कार्यक्रम भी चलाए गए।

सरकार ने पिछले दो दशकों में अल्प पोषण और कुपोषण पर काबू पाने के लिए उल्लेखनीय कदम भी उठाए हैं जैसे स्कूलों में दोपहर के भोजन (मिड डे मील) की शुरुआत, आंगनवाड़ियों में गर्भवती और स्तनपान करने वाली माताओं को राशन एवं सार्वजनिक वितरण प्रणाली के जरिए गरीबी की रेखा से नीचे जीवनयापन करने वालों को सबसिडी पर अनाज उपलब्ध कराना। राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा एक्ट (एनएफएसए), 2013 का लक्ष्य सहायक योजनाओं और कार्यक्रमों के माध्यम से सर्वाधिक कमजोर तबकों को भोजन एवं पोषण सुरक्षा प्रदान कराना और भोजन को कानूनी अधिकार के रूप में उपलब्ध कराना है।

संयुक्त राष्ट्र का सहयोग

भारत मे पोषण और आजीविका की चुनौतियों से निपटने और यह सुनिश्चत करने के लिए कि कमजोर वर्ग पिछड़ नहीं रहे, संयुक्त राष्ट्र के प्राथमिक समूह सरकार के साथ पोषण सेवाओं को उन्नत बनाने के लिए कार्य कर रहे हैं। साथ ही घरों में आहार और देखभाल के तौर-तरीकों में भी सुधार किया जा रहा है। एनएफएसए के अंतर्गत आने वाले सुरक्षा तंत्रों की क्षमता और प्रभाव को बढ़ाने में सरकार के साथ सहयोग किया जा रहा है और छोटे एवं सीमांत किसानों के परिवारों की कृषि आय बढ़ाने की कोशिशें जारी हैं। यह प्राथमिक समूह महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी (मनरेगा) एक्ट एवं राष्ट्रीय ग्रामीण आजीविका मिशन जैसे गरीबी उन्मूलन कार्यक्रमों के कृषि एवं आजीविका संबंधी पहलुओं को मजबूत करने में सहायता प्रदान कर रहा है।

पिछले वर्ष समूह ने स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय के सहयोग से गेहूं आटा संवर्धन पर राष्ट्रीय परामर्श (नेशनल कंसल्सटेशन ऑन वीट फ्लोर फोर्टिफिकेशन) और भारतीय खाद्य संरक्षा एवं मानक प्राधिकरण (एफएसएसएआई) के सहयोग से राष्ट्रीय खाद्य संवर्धन नीति के समर्थन पर एक कार्यशाला का आयोजन किया।

संयुक्त राष्ट्र बाल कोष (यूनिसेफ) के नेतृत्व में प्राथमिक समूह के सदस्यों में खाद्य एवं कृषि संगठन (एफएओ), अंतर्राष्ट्रीय कृषि विकास कोष (आईएफएडी), अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन (आईएलओ), अंतर्राष्ट्रीय प्रवास संगठन (आईओएम), संयुक्त राष्ट्र लैंगिक समानता एवं महिला सशक्तीकरण संस्था (यूएनविमेन), संयुक्त राष्ट्र विकास कार्यक्रम (यूएनडीपी), संयुक्त राष्ट्र शैक्षिक, वैज्ञानिक और सांस्कृतिक संगठन (यूनेस्को) और विश्व खाद्य कार्यक्रम (डब्ल्यूएफपी) शामिल हैं।[/vc_column_text][/vc_column][/vc_row]