ऊर्जा: स्वच्छ, किफायती और दक्ष

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सभी के लिए नवीकरणीय और दक्ष ऊर्जा की उपलब्धता का स्तर बढ़ाना

चुनौती

भारत विश्व की तेजी से उभरती अर्थव्यवस्थाओं में से एक है और अनुमान है कि 2040 तक विश्व स्तर पर बढ़ती ऊर्जा मांग में उसका योगदान एक चौथाई होगा। ग्रीनहाउस गैसों का सर्वाधिक उत्सर्जन करने वाले देशों में उसका स्थान चीन, संयुक्त राज्य अमेरिका और यूरोपीय संघ के बाद चौथा है और जिस प्रकार भारत अपने नागरिकों को अधिक और बेहतर अवसर प्रदान कर रहा है, तथा उनके जीवन स्तर में सुधार हो रहा है, उत्सर्जन के लगातार बढ़ने की आशंका है। भले ही भारत में 2000 से अब तक ऊर्जा उपयोग लगभग दोगुना हो गया है, यहां प्रति व्यक्ति ऊर्जा उपभोग विश्व औसत का एक तिहाई है और 237 मिलियन भारतीयों को बिजली उपलब्ध नहीं है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने यह सुनिश्चित करने की प्रतिबद्धता जताई है कि 2019 तक 27 मिलियन परिवारों को बिजली उपलब्ध कराई जाएगी।

अवसर

लाखों नागरिकों को बिजली देने के लक्ष्य के साथ भारत ने जलवायु परिवर्तन पर पेरिस समझौते के तहत भी स्वेच्छा से लक्ष्य निर्धारित किए हैं। देश ने 2030 तक जीडीपी की उत्सर्जन गहनता को 2005 के स्तर की तुलना में 30-35 प्रतिशत तक कम करने की प्रतिबद्धता जताई है। साथ ही 2030 तक नवीकरणीय उर्जा क्षमता को 40 प्रतिशत तक बढ़ाने और गैर-जीवाश्म ईंधन के जरिए बिजली की 40 प्रतिशत जरूरत को पूरी करने का लक्ष्य रखा गया है।

भारत सरकार ने 2022 तक 175 GW नवीकरणीय ऊर्जा उत्पादन का महत्वाकांक्षी लक्ष्य भी निर्धारित किया है। अंतरराष्ट्रीय सौर गठबंधन में उसके नेतृत्व (फ्रांस के साथ) से यह प्रतिबद्धता जाहिर होती है। परिणामस्वरूप सौर ऊर्जा में वार्षिक निवेश 2019-20 में कोयले में किए जाने वाले निवेश से बढ़ सकता है, जिसमें विदेशी कंपनियों का 35 बिलियन US$ मूल्य का योगदान होगा। इस प्रकार 2020 तक सौर ऊर्जा कोयले से सस्ती हो सकती है। भारत का ऊर्जा उपलब्धता बाजार (केवल विकेंद्रीकृत नवीकरणीय ऊर्जा, डीआरई के जरिए) 400 मिलियन US$ अनुमानित है। विश्व स्तर पर अगर नवीकरणीय ऊर्जा का उपयोग दोगुना होगा, तो विश्व जीडीपी के 1.3 ट्रिलियन US$ तक बढ़ने की उम्मीद है। ऊर्जा दक्षता के अवसरों का दोहन करने के लिए बाजार आधारित दृष्टिकोण की कीमत 11 बिलियन US$ होने का अनुमान है।

विचारणीय क्षेत्र

भारत की महत्वाकांक्षा है, नवीकरणीय ऊर्जा क्षमता को व्यापक बनाया जाए। इससे व्यापार जगत और निजी क्षेत्र को यह अवसर मिल सकता है कि वह नई नवीकरणीय ऊर्जा तकनीक के क्षेत्र में केंद्र और राज्य सरकारों का सहयोग करे। नए और ग्रिड-पूरक डीआरई समाधानों, जैसे गृह ऊर्जा प्रणालियों और नवीकरणीय ऊर्जा लघु-ग्रिड्स के जरिए, व्यवसाय जगत सुदूर क्षेत्रों में रहने वाले लोगों को कनेक्टिविटी दे सकते हैं। सौर ऊर्जा और लिथियम-इयॉन की बैटरियों के जरिए दक्ष भंडारण, जोकि नवीकरणीय ऊर्जा के उपयोग को बढ़ाने के लिए महत्वपूर्ण है, में निवेश आवश्यक है। नई कारोबारी मॉडल और वित्तीय संस्थान, जैसे नवीकरणीय ऊर्जा और ऊर्जा दक्षता परियोजनाओं के लिए ऋण वित्त प्रदान करने के लिए हरित अवसंरचना बॉन्ड्स, हस्तक्षेप के दूसरे मुख्य क्षेत्र हो सकते हैं।

यूएनआईबीएफ की गतिविधियां

  • ठोस लक्ष्यों को स्पष्ट करने के लिए जून 2017 की बैठक में समूह ने ऐसे 4-5 मुख्य समाधानों को संयुक्त रूप से तलाशने पर सहमति जताई जो भारत की ऊर्जा समस्याओं को हल करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकते हैं। मुख्य निष्कर्ष इस प्रकार थे:
    1. सरकारी मिशन के समान ऐसे कारोबारी प्रस्तावों को सामने रखना जोकि डीडीयू मिशन का पूरक हों।
    2. ‘विकेंद्रीकृत नवीकरणीय ऊर्जा’ को मुख्यधारा में शामिल करना और डीआरई के क्षेत्र में नए प्रयोग पर ध्यान केंद्रित करना।
    3. मेक इन इंडिया/राष्ट्रीय पर्यावरण कोष के उपयोग के तरीकों पर चर्चा।
  • समूह स्वयंसेवियों के कार्यबल को गठित करने पर सहमत हुआ जिसमें विश्लेषण, नीति, नए प्रयोग और समग्र मांग पर एक-एक उपसमूह बनाए जाएंगे। उपसमूह वर्चुअली और व्यक्तिगत रूप से नियमित बैठक करेंगे।
  • समूह ने सितंबर 2017 में नवीन एवं नवीकरणीय ऊर्जा मंत्रालय के सचिव और यूएन रेज़िडेंट कोऑर्डिनेटर के साथ राउंटटेबल किया। इस चर्चा में अपर सचिव, संयुक्त सचिव, सलाहकार और कार्यबल के सदस्य भी मौजूद थे। बैठक में डीआरई क्षेत्र की समस्याओं और उद्योग की भूमिका पर चर्चा हुई। समूह ने चार उपसमूहों पर अपने सुझाव पेश किए।
  • मंत्रालय के सुझाव पर यूएनआईबीएफ के कार्यबल ने 10 सूत्री सुझाव पत्र पेश किया जिसमें क्षेत्र के विकास के लिए हस्तक्षेप के संभावित अवसरों को रेखांकित किया गया था। अपर सचिव के साथ चर्चा के बाद सात सूत्र चुने गए।
  • चिन्हित किए गए सात क्षेत्रों में साझेदारी के लिए बातचीत शुरू की गई। इनसे ऐसे स्तरीय विचार प्रकट होने चाहिए जिनका अनुकरण किया जा सके।

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