लैंगिक समानता : महिलाओं का आर्थिक सशक्तीकरण

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अंतराल को कम करने से महिलाओं का आर्थिक सशक्तीकरण होगा

चुनौती

भारत में श्रमशक्ति में महिलाओं का प्रतिनिधित्व 29 प्रतिशत है, जबकि 2004 में यह आंकड़ा 35 प्रतिशत था। भारत में महिलाओं द्वारा किया जाने वाला आधे से अधिक श्रम अवैतनिक है और लगभग पूरा श्रम अनौपचारिक और असुरक्षित है। अधिकतर क्षेत्रों में महिलाओं को उचित प्रतिनिधित्व नहीं मिलता, जिसमें व्यापार जगत के शीर्ष पद भी शामिल हैं। हालांकि महिलाएं खेती से जुड़े 40 प्रतिशत कार्य करती हैं, भारत में केवल 9 प्रतिशत भूमि पर उनका नियंत्रण है। महिलाएं औपचारिक वित्तीय प्रणाली से भी बाहर हैं। भारत की लगभग आधी महिलाओं का कोई बैंक या बचत खाता नहीं है, जिसे वे खुद नियंत्रित करती हैं और 60 प्रतिशत महिलाओं के नाम पर कोई मूल्यवान परिसंपत्ति नहीं है। हैरत नहीं है कि देश की जीडीपी में महिलाओं की हिस्सेदारी केवल 17 प्रतिशत है जबकि उनका विश्व औसत 37 प्रतिशत है। इसके अतिरिक्त महिलाएं शारीरिक रूप से अधिक असुरक्षित हैं। भारत में महिलाओं के खिलाफ अपराध की दर 53.9 प्रतिशत है। राजधानी दिल्ली में 92 प्रतिशत महिलाओं का कहना है कि उन्हें सार्वजनिक स्थानों पर यौन या शारीरिक हिंसा का सामना किया है।

अवसर
ऐसा अनुमान है कि भारत में लैंगिक समानता का आर्थिक लाभ हो सकता है। अगर महिलाओं के साथ भेदभाव न किया जाए तो 2025 तक देश की जीडीपी में 700 बिलियन US$ का इजाफा हो सकता है। आईएमएफ के अनुमान के अनुसार देश की श्रमशक्ति में महिलाओं की समान भागीदारी से भारत की जीडीपी में 27 प्रतिशत की वृद्धि हो सकती है। भारत की आधे से अधिक महिलाओं के पास सेलफोन नहीं है और 80 प्रतिशत उन्हें इंटरनेट से नहीं जोड़ पातीं। अगर महिलाओं के पास भी पुरुषों जितने फोन होते तो अगले 5 वर्षो में फोन कंपनियों के राजस्व में 17 बिलियन US$ की बढ़ोतरी हो जाती। विश्व स्तर पर महिलाएं खरीद संबंधी 80 प्रतिशत फैसले लेतीं या फैसलों को प्रभावित करती हैं और 20 ट्रिलियन US$ के व्यय को नियंत्रित करती हैं। महिलाओं को सशक्त बनाने के सामाजिक लाभ भी हैं। महिलाएं अपनी 90 प्रतिशत आय को अपने परिवारों पर खर्च करती हैं और आर्थिक रूप से उन्हें सशक्त करने से मांग बढ़ती है, बच्चे स्वस्थ और सुशिक्षित होते हैं और मानव विकास का स्तर ऊंचा होता है। निजी क्षेत्र के हर तीन में से एक शीर्ष अधिकारी का कहना है कि उभरते बाजारों में महिलाओं को सशक्त करने के प्रयासों के फलस्वरूप लाभ बढ़ा है। भारत सरकार की मुद्रा योजना सूक्ष्म और लघु उद्यमों को सहयोग प्रदान करती है और जन धन योजना के तहत किए जाने वाले प्रत्यक्ष लाभ हस्तांतरणों से महिलाएं सशक्त होती हैं। मुद्रा के तहत कुल उधारकर्ताओं में 78 प्रतिशत महिला उद्यमी हैं।

विचारणीय क्षेत्र

निजी क्षेत्र और कारोबारी समुदाय दक्षता और रोजगार के बीच के अंतर को कम करने और महिलाओं को उत्कृष्ट श्रम उपलब्ध कराने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकते हैं। महिलाओं में मार्केटिंग संबंधी कौशल और बेहतर तरीके से फैसले लेने की क्षमता विकसित हो, इसके लिए व्यावसायिक एवं तकनीकी प्रशिक्षण, जीवन कौशल और वित्तीय साक्षरता कार्यक्रम को तब तक अर्थपूर्ण तरीके से विकसित नहीं किया जा सकता, जब तक निजी क्षेत्र को उसमें संलग्न नहीं किया जाए। कंपनियां लघु वित्त के जरिए महिला उद्यमियों की मदद कर सकती हैं और उनके उत्पादों एवं सेवाओं को आपूर्ति श्रृंखलाओं में जोड़ सकती हैं। इंटरनेट और आईसीटी तक महिलाओं की पहुंच बढ़ाने से कनेक्टेड महिलाओं का उभरता बाजार तैयार हो सकता है जोकि कारोबार के अवसरों से जुड़ सकती हैं। इसके अतिरिक्त नियोक्ता के रूप में निजी क्षेत्र महिलाओं को घर और सार्वजनिक स्थानों पर हिंसा से सुरक्षा प्रदान कर सकता है। वह समावेशी परिवहन के जरिए महिलाओं का आवागमन सुनिश्चत कर सकता है।

यूनआईबीएफ की गतिविधियां

  • अपनी दूसरी बैठक में प्रतिभागियों ने इस बात पर सहमति जताई कि श्रमशक्ति में महिलाओं की भागीदारी का उत्पादकता और लाभपरकता पर प्रत्यक्ष और सकारात्मक प्रभाव पड़ेगा। एक आम सहमति बनी कि श्रमशक्ति में लैंगिक समानता अब व्यवसाय जगत के लिए जरूरी है।
  • यूएन विमेन ने महिला सशक्तीकरण सिद्धांत (डब्ल्यूईपी) को रेखांकित किया। इनमें से एक गैप्स एनालिसिल टूल था जोकि यह निर्धारित करने का सरल तरीका है कि कोई संगठन लैंगिक समानता और सुधारात्मक उपाय करने के लिहाज से कहां ठहरता है।
  • उद्योग जगत की सर्वोत्तम पद्धतियों को साझा किया गया ताकि श्रमशक्ति में लैंगिक समानता के लाभों के बारे में उद्योग जगत को शिक्षित करने वाले मौजूदा मंचों का स्तर ऊंचा किया जा सके। साथ ही ‘ग्रो द ट्राइब’ के रोल मॉडल्स को चिन्हित किया जा सके।
  • समूह निम्नलिखित के लिए सहमत हुआ:
    • अधिक से अधिक चीफ एक्जीक्यूटिव ऑफिसरों को इस बात के लिए प्रोत्साहित किया जाए कि वे लैंगिक समानता को समर्थन देने का संकल्प लें।
    • उन मेंटर्स को चिन्हित किया जाए जो लैगिक समानता की नीति अपनाने के लिए अपने क्षेत्र के संगठनों को अगुवाई करें।
    • संगठन की ब्रांड/पीआर वैल्यू को बढ़ाने के तरीके सुझाए जाएं ताकि श्रमशक्ति में महिलाओं को प्रोत्साहन मिले।
    • सर्वोत्तम कार्य पद्धतियों का निम्नलिखित के माध्यम से आदान प्रदान:
      • मौजूदा मंचों और कंटेंट का स्तर बढ़ाना
      • रोल मॉडल्स को चिन्हित करना
      • कहानियां सुनाना
      • सफलता की कहानियों और नीतियों को साझा करना

एसडीजी लिंकेज[/vc_column_text][/vc_column][/vc_row][vc_row][vc_column][vc_row_inner][vc_column_inner width=”1/6″][vc_single_image image=”18272″ img_size=”full” alignment=”center” >