स्वास्थ्य : पोषण और सेवाओं की उपलब्धता में अभिनव प्रयोग

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2030 तक कुपोषण को समाप्त करने, स्टंटिंग एवं वेस्टिंग तथा मातृत्व एवं शिशु मृत्यु दर में गिरावट के लिए निजी क्षेत्र की भागीदारिता बढ़ाएं

चुनौती

भारत में विश्व के एक तिहाई स्टंटेड बच्चे रहते हैं। यहां 5 साल से कम उम्र के हर 10 में से चार बच्चे स्टंटेड हैं (जिनका कद उनकी उम्र के हिसाब से कम है) और 21 प्रतिशत वेस्टेड हैं (जिनका वजन उनकी उम्र के हिसाब से कम है)। कुपोषण और अल्पपोषण के साथ-साथ वजन ज्यादा होने और मोटापे या आहार संबंधित गैर संचारी रोगों की भी समस्या है। इससे स्वास्थ्य संबंधी चुनौती और गंभीर हो जाती है। लगभग 23 प्रतिशत महिलाएं और 20 प्रतिशत पुरुषों का बॉडी मास इंडेक्स सामान्य से कम है। लगभग 20 प्रतिशत महिलाओं और पुरुषों का वजन ज्यादा है या वे मोटापे का शिकार हैं।

सरकार ने 2019 तक शिशु मृत्यु दर (आईएमआर) को 1,000 जीवित प्रसव पर 37.9 से घटाकर 28 करने (विश्व स्तर पर आईएमआर 31.7 है) और 2018-20 तक मातृत्व मृत्यु दर (एमएमआर) को 10,000 जीवित प्रसव पर 174 से 100 करने का लक्ष्य रखा है। विश्व स्तर पर मौजूदा एमएमआर 216 है। इन लक्ष्यों को पूरा करने के लिए महिला शक्ति केंद्रों की स्थापना की गई है जिससे ग्रामीण महिलाओं को स्वास्थ्य और पोषण संबंधी सहायता सेवाएं प्रदान की जा सकें। दूसरी पहल मातृत्व लाभ योजना है जिसके तहत उन गर्भवती महिलाओं के बैंक खातों में सीधे 6,000 रुपए हस्तांतरित हो जाते हैं जो संस्थागत प्रसव और अपने बच्चों का टीकाकरण कराने का विकल्प चुनती हैं। फिर भी जीडीपी में सार्वजनिक स्वास्थ्य व्यय का हिस्सा केवल 1.41 प्रतिशत है- जोकि दक्षिण एशिया के औसत (1.34 प्रतिशत) के बराबर और विश्व के औसत (5.99 प्रतिशत) से काफी कम है, यहां तक कि उप-सहारा अफ्रीका के औसत (2.32 प्रतिशत) से भी कम है। हालांकि भारत सरकार 2020 तक सार्वजनिक स्वास्थ्य व्यय को बढ़ाकर जीडीपी का 2.5 प्रतिशत करने को प्रतिबद्ध है।

अवसर

भारत के संसाधनों और बीमारियों के बढ़ते बोझ, साथ ही एक बड़ी जनसंख्या को देखते हुए व्यापार के ऐसे नए और कुशल सूत्रों की जरूरत है जो स्वास्थ्य के क्षेत्र में डिजिटल क्रांति कर सकें। उदाहरण के लिए अमेजन के इको जैसे डिवाइस सीपीआर के जरिए यूजर्स को दिशानिर्देश दे सकते हैं और एक आर्टिफिशियल इंटेलिजेस-पावर्ड ‘वर्चुअल फिजिशियन’ प्लेटफॉर्म में प्लग करके स्वास्थ्य संबंधी प्रश्नों के उत्तर दे सकते हैं। निजी क्षेत्र द्वारा ऐसे स्टार्ट अप्स शुरू किए जा सकते हैं जो स्वास्थ्य सेवाओं की श्रृंखला में नए समाधानों पर कार्य करने वाले एप, भविष्य सूचक निदान प्रणालियां और नए डिवाइस बनाएं, खास तौर से उन क्षेत्रों में जहां स्वास्थ्य सेवाएं उपलब्ध नहीं हैं।

विभिन्न प्रकार के कुपोषण के कारण उत्पादकता को होने वाले नुकसान को कम करना (प्रति वर्ष सकल राष्ट्रीय उत्पाद का लगभग 11 प्रतिशत), जिससे एक स्वस्थ श्रमशक्ति तैयार होगी, आर्थिक वृद्धि की निरंतरता के लिए महत्वपूर्ण है।

विचारणीय क्षेत्र

स्वास्थ्य सेवा के क्षेत्र में उत्पादों और सेवाओं के लिए बहुत अधिक गुंजाइश है। निजी क्षेत्र अपने लॉजिस्टिक्स, आपूर्ति श्रृंखलाओं और मार्केट संबंधी विशेषज्ञता की मदद से स्वास्थ्य प्रणालियों में सुधार कर सकता है। मुख्य दवाओं और मेडिकल सप्लाइज की उपलब्धता बढ़ाने के लिए सरकारी एजेंसियों से साझेदारी और इन सप्लाइज की मार्केटिंग करने से मांग उत्पन्न होगी और सुदूर क्षेत्रों में रहने वाले लोगों को भी जीवन रक्षक दवाएं मिल सकेंगी। कंपनियां डायबिटीज, हाइपरटेंशन जैसे गैर संचारी रोगों के शिकार लोगों के उपभोग के लिए बिकने वाले खाद्य उत्पादों में सही मात्रा में पोषण को सुनिश्चित कर सकती हैं और उपयुक्त उपभोक्ता शिक्षा और पौष्टिक उत्पादों को बढ़ावा देकर सेवाकर्मियों को जानकारीपूर्ण विकल्प प्रदान कर सकती हैं।

यूएनआईबीएफ की गतिविधियां

  • समूह इस बात पर सहमत हुआ कि सार्वजनिक स्वास्थ्य की अवधारणा में सार्वभौमिक उपलब्धता, सेवाओं की गुणवत्ता, जागरूकता (स्वास्थ्य एवं पोषण, जल और सैनिटेशन, स्वच्छता) और लास्ट माइल उपलब्धता शामिल है।
  • सर्वोत्तम पद्तियों और अपने संगठन या क्षेत्र से प्राप्त होने वाले नए विचारों को साझा किया गया।
  • समूह ने निजी क्षेत्र के साथ साझेदारी करने का लक्ष्य निर्धारित किया। चूंकि निजी क्षेत्र की संलग्नता से सकारात्मक प्रभाव पड़ेगा, इसलिए साझेदारी के लिए उन दो क्षेत्रों को चिन्हित किया जाएगा जहां साझेदारी के सबसे अधिक अवसर हों।
    • सेवाओं की उपलब्धता में नए विचार
    • कम्यूनिकेशन/जागरूकता/उत्तरदायित्वपूर्ण मार्केटिंग

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