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आतंकवाद का सामना करने के बारे में संयुक्त राष्ट्र उच्च-स्तरीय सम्मेलन पर संपादकीय लेख

[vc_row][vc_column][vc_column_text]आतंकवाद विश्व के सामने लगातार जारी और नए-नए रूप लेती भयावह समस्या है। कोई देश इससे बचा नहीं है। सोशल मीडिया, एन्क्रिप्ट किए गए संदेशों और वैब की अंधेरी दुनिया के ज़रिए दुष्प्रचार हो रहा है, नए रंगरूटों को भड़काया जा रहा है औऱ ज़ुल्मों की साज़िशें रची जा रही हैं। इसके खतरे अनेक हैं- अकेले आतंकवादियों की अनाड़ी तरकीबों से लेकर सोची-समझी साज़िश के तहत पूरे तालमेल से होने वाले हमले। इसके अलावा आतंकवादियों द्वारा रसायनिक, जैविक औऱ रेडियोधर्मी हथियारों के इस्तेमाल की खौफनाक आशंका भी है।

हमारा जवाब भी उतना ही फुर्तीला और बहुमुखी होना चाहिए। इसी उद्देश्य से मैं आतंकवाद का सामना करने के बारे में पहला संयुक्त राष्ट्र उच्च-स्तरीय सम्मेलन इस सप्ताह न्यूयॉर्क में आयोजित कर रहा हूँ। विभिन्न देशों में आतंकवाद रोधी एजेंसियों के प्रमुख और अंतर्राष्ट्रीय संस्थाओं तथा प्रबुद्ध समाज के प्रतिनिधि अंतर्राष्ट्रीय सहयोग सुधारने और नई साझेदारियाँ विकसित करने के तरीकों पर चर्चा करेंगे।

सम्मेलन में चार प्रमुख क्षेत्रों पर ध्यान केन्द्रित रहेगा। सबसे पहले तो इस बात पर विचार होगा कि सरकारें, सुरक्षा एजेंसियां औऱ कानून लागू करने वाली संस्थाएं आतंकवादी नेटवर्क्स का पता लगाने, उन्हें तोड़ने औऱ सज़ा दिलाने के लिए महत्वपूर्ण सूचनाओं औऱ रणनीतियों का आदान-प्रदान कैसे सुधार सकते हैं। सम्मेलन में चर्चा का दूसरा मुद्दा यह होगा कि दुनियाभर में आतंकवाद से जूझते देशों की मदद के लिए संयुक्त राष्ट्र औऱ क्या कर सकता है।

तीसरा मुद्दा विदेशी आतंकवादी लड़ाकों की तरफ से उत्पन्न खतरे से निपटने का रहेगा। सीरिया औऱ इराक में आईएसआईएल की सैनिक हार के बाद उसकी वैचारिक सोच से संचालित भाड़े के ये सैनिक संघर्ष के अन्य क्षेत्रों में जा रहे हैं या स्वदेश लौट रहे हैं। इस दौरान वे जंग लड़ने की अपनी महारथ दूसरों को सिखा रहे हैं, नए रंगरूट भर्ती कर रहे हैं और नए हमलों की साज़िश रच रहे हैं।

मैं चाहता हूँ कि सम्मेलन में चौथा विचारणीय मुद्दा यह हो कि हम आतंकवाद और हिंसक उग्रवाद को कैसे रोक सकते हैं। सुरक्षा व्यवस्था कितनी भी बेहतर हो जाए कभी पर्याप्त नहीं हो सकती। हमें उन निहित परिस्थितियों का समाधान करना होगा जिनके कारण लोग विषैली सोच के शिकार होते हैं।

आतंकवाद का खतरा किसी भी राष्ट्र की सीमाओं में बंधा नहीं है और उसे कोई भी एक सरकार या संगठन मात नहीं दे सकता। इसके लिए वैश्विक, क्षेत्रीय और राष्ट्रीय स्तरों पर विभिन्न पक्षों को मिलकर प्रयास करना होगा। आतंकवाद का सामना कर सकने वाली संरचनाओं और संस्थाओं को मज़बूत करना आवश्यक है। किंतु हमें शिक्षा के प्रसार, युवा बेरोज़गारी और हाशिए पर धेकेले जाने की समस्याओं के समाधान के ज़रिए  मूल कारणों का भी निराकरण करना होगा। इसके लिए स्थानीय समुदायों, धार्मिक संगठनों और मीडिया का सहयोग लेना होगा। इस सम्मेलन और आतंकवाद से निपटने की हमारी व्यापक रणनीतियों में प्रबुद्ध समाज की केन्द्रीय भूमिका है।

एक बात बहुत साफ है कि आतंकवाद और हिंसक उग्रवाद का सामना करते हुए हमें मानव अधिकारों का सम्मान और अंतर्राष्ट्रीय कानून का पालन करना ही होगा।  यह सिर्फ न्याय का नहीं बल्कि प्रभावशीलता का प्रश्न भी है। जब आतंकवाद से निपटने की नीतियों का इस्तेमाल शांत विरोध और जायज़ विपक्षी आंदोलनों को दबाने, बहस बंद कराने, मानव अधिकारों के हिमायतियों को निशाना बनाने या अल्पसंख्यकों को कलंकित करने के लिए किया जाता है तो वे असफल रहती हैं और हम सबकी हार होती है। वास्तव में ऐसी कार्रवाइयों से असंतोष तथा अस्थिरता और भड़क सकती हैं तथा विद्रोही मानसिकता और पनपती है।

आतंकवाद को किसी भी उद्देश्य या शिकायत के नाम पर उचित नहीं ठहराया जा सकता। किंतु हम, लोगों को हिंसक उग्रवाद की तरफ धकेलने वाले संघर्षों, मानव अधिकारों के हनन, गरीबी और बहिष्करण को समाप्त कर इस खतरे को केवल कम ही कर सकते हैं। आतंकवाद की शरण में जाने वाले अधिकतर नए रंगरूट 17 और 27 वर्ष की आयु के बीच होते हैं। हमें उन्हें आर्थिक एवं सामाजिक रूप से बेहतर अवसर देने ही होंगे। हमें दुनियाभर में पनप रहे ध्रुवीकरण, नस्ल विशेष के प्रति द्वेष औऱ नफरत की बोली पर लगाम भी लगानी ही होगी।

हमें आतंकवाद के हाथों मारे गए, घायल किए गए और सताए गए हज़ारों-लाखों लोगों को भी याद रखना होगा। उसकी मार से बचे हुए लोगों को न्याय पाने और अपने जीवन को वित्तीय एवं मनोवैज्ञानिक दोनों ही दृष्टि से फिर से खड़ा करने के लिए हमारे सहारे की ज़रूरत है। हमें उनकी बात भी सुननी होगी और उनके अनुभवों से सीखना भी होगा।

अंत में, आतंकवाद औऱ हिंसक उग्रवाद से जैंडर का आयाम भी गहराई से जुड़ा है। आतंकवादी यौन हिंसा, अपहरण, ज़बरन विवाह के ज़रिए औऱ मुक्त आवाजाही और शिक्षा पाने से वंचित कर महिलाओं औऱ लड़कियों के अधिकारों का उल्लंघन करते हैं। अनेक अत्याचारी घर के भीतर दुर्व्यवहार करते हैं। इसलिए हमें महिलाओं के अधिकारों, भागीदारी औऱ नेतृत्व को तुरंत प्राथमिकता देनी होगी।

अंतर्राष्ट्रीय समुदाय ने आतंकवाद का सामना करने के प्रयासों में लम्बा सफर तय किया है। एक स्पष्ट अंतर्राष्ट्रीय ढाँचे की मौजूदगी से आतंकवादियों को सज़ा देना, उनके वित्तीय नेटवर्को को तोड़ना और ऑनलाइन विद्रोही मानसिकता को भड़कने से रोकना आसान हो गया है। फिर भी अभी बहुत कुछ करना बाकी है।

आतंकवादी गुटों का एजेंडा, अधिनायकवाद, महिलाओं के प्रति द्वेष औऱ असहिष्णुता का है। इनसे संयुक्त राष्ट्र चार्टर और मानव अधिकारों की सार्वभौम घोषणा में निहित साझे मूल्यों को चोट पहुँचती है। हमारा दायित्व है कि हम एकजुट होकर सभी लोगों के लिए, हर जगह शांति और संरक्षा, गरिमा और अवसर से भरपूर विश्व की रचना करें, ताकि हम हिंसक उग्रवादियों को उस ईंधन से वंचित कर सकें जो इस नफरत की विचारधाराओं को फैलाता है।[/vc_column_text][/vc_column][/vc_row]

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